‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे के साथ के नारे के साथ बदलाव की राजनीति की पहल करते हुए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने आगामी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) विधानसभा चुनाव (election) में 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने का एलान किया है. इसके बाद राज्य की राजनीति में थोड़ी-बहुत हलचल हुई. बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने इसे कोरी नाटकबाजी करार दिया. वहीं, राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी पर भी चर्चाएं हुईं.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछले तीन दशकों में अपनी जमीन खो चुकी कांग्रेस (Congress) एक बार इसे पाने की कोशिश कर रही है. और जिस तरीके से उत्तर प्रदेश चुनाव में पार्टी का चेहरा बन चुकीं प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) आधी आबादी को लेकर घोषणाएं कर रही हैं, उससे ये माना जा रहा है कि कांग्रेस 6.74 करोड़ महिलाओं मतदाताओं के सहारे ही फिर से राज्य में आना चाहती है. महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने के बाद कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनने पर छात्राओं को स्मार्ट फोन और इलेक्ट्रिक स्कूटी देने का भी एलान कर दिया.
उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति और धर्म एक अभिन्न हिस्से की तरह है. और कांग्रेस इसको महिला मतदाताओं के सहारे तोड़ना चाहती हैं. प्रियंका गांधी ने लखनऊ के प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, ‘अगर देश की राजनीति को जाति और धर्म से बाहर निकालकर विकास की राजनीति की ओर ले जाना है, अगर देश को समता की राजनीति की ओर ले जाना है, भागीदारी की राजनीति की ओर ले जाना है तो महिलाओं को आगे बढ़ना पड़ेगा.’
यह एक नजर में तो भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी कदम दिखता है, लेकिन इसके अपने नुकसान भी हैं. चूंकि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास खोने को अधिक कुछ भी नहीं तो यह नुकसान का भी अधिक नुकसान नहीं है. शायद इसे देखते हुए ही कांग्रेस (Congress) नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश चुनाव के लिए यह फैसला लिया है.
प्रियंका गांधी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि इस फैसले का असर राष्ट्रीय स्तर पर भी पड़ सकता है. हालांकि, इससे पहले पश्चिम बंगाल की तृणमूल (TMC) कांग्रेस और ओडिशा की बीजू जनता दल (BJD) इस तरह का फैसला ले चुकी हैं. लेकिन कांग्रेस और इन पार्टियों के फैसले में फर्क है कि इन दोनों पार्टियों ने यह फैसला राज्य की सत्ता में रहने और महिलाओं के कल्याण के लिए योजनाएं चलाईं. इसके फायदे इन दोनों पार्टियों को चुनावों में मिले हैं.
वहीं, इनसे अलग बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने अब तक चुनावी टिकटों में तो महिलाओं के लिए कोई कोटा तय नहीं किया है. लेकिन राज्य की महिलाएं जाति-धर्म और यहां तक की परिवार के मुखिया की बातों को भी दरकिनार कर बड़ी संख्या में नीतीश कुमार को वोट देती हैं. नीतीश कुमार के लिए कल्याणकारी योजनाओं के जरिए ही महिलाएं एक वोट बैंक के रूप में तब्दील हुई हैं.
अगर हम भारतीय राजनीति की बात करें तो महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा रहा है. कई राज्यों के स्थानीय निकायों में यह महिलाओं को 33 फीसदी से 50 फीसदी तक आरक्षण दे दिया गया है, लेकिन देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी भी कई कई विकासशील और अविकसित देशों से भी पीछे है. अभी तक लोकसभा में 14 फीसदी से अधिक है. वहीं, राज्यों की विधानसभाओं में यह आंकड़ा नौ फीसदी से भी कम है. भारतीय राजनीति का यह खोखलापन है कि महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली पार्टियां संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण को लेकर एकमत नहीं हो पा रही हैं.
वहीं, ग्राम पंचायत सहित अन्य स्थानीय निकायों, जहां महिलाओं की भागीदारी तय की गई है, वहां भी अधिकांश महिलाएं भी केवल नाममात्र की जनप्रतिनिधि रह पाती हैं. उनके अधिकांश फैसले उनके पति या अन्य पुरुष सदस्य करते है. इसके अलावा संसद और विधानसभा में भी महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर राजनीति पार्टियां उसे क्षेत्र के प्रभावशाली नेता के परिवार की महिलाओं को ही टिकट देती हैं.
इस तरह की आशंका प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस के इस फैसले को लेकर भी जाहिर की गई. इसके जवाब में प्रियंका गांधी ने कहा, ‘ये बात सच कि कई बार लोग अपनी पत्नियों को, बेटियों को चुनाव लड़वा देते हैं, लेकिन इसमें कोई बड़ी बुराई नहीं है. लड़ लेते हैं और बाद में सक्षम हो जाती है. ये एक प्रोसेस होता है. एक शुरुआत होती है प्रोसेस की. और धीरे-धीरे सक्षमता मिलती है, मुझे तो कोई बुराई नहीं लगती है.’
प्रियंका की इन बातों से यह साफ होता दिखता है कि उत्तर प्रदेश चुनाव में भले ही 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने का एलान की हो तो लेकिन महिलाओं को पुरुष उम्मीदवारों के प्रभाव को देखकर उम्मीदवार बनाने के लोभ को नहीं छोड़ पाएगी. इसके अलावा चुनाव में अपनी संभावनों को देखते हुए राज्य की राजनीतिक धरातल पर कमजोर कांग्रेस के लिए इसी जमीन से 161 महिलाओं का उम्मीदवार के रूप में चयन एक बड़ी चुनौती होगी.
हालांकि, इन चुनौतियों के बीच अन्य राजनीतिक दलों के सामने एक बड़ी लकीर खींचने में जरूर कामयाब दिख रही है. लेकिन एक सवाल यहां कांग्रेस के लिए भी खड़ा होता है कि “लड़की हूं, लड़ सकती हूं” के साथ उत्तर प्रदेश में बदलाव की बात करने वाली पार्टी बाकी के चार चुनावी राज्यों – उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मिजोरम में चुप्पी क्यों साधी हुई है? क्या इन राज्यों का नेतृत्व उत्तर प्रदेश कांग्रेस की तरह राजनीति में महिलाओं की भागीदारी से दूरी बनाकर रखना चाहती हैं, जबकि इन राज्यों में कांग्रेस हालिया वर्षों में सत्ता में रह चुकी हैं.