क्यों उपचुनाव के बीच नीतीश कुमार को रोहित चौधरी का स्वागत करने के लिए आगे आना पड़ा

बिहार उपचुनाव के बीच मंगलवार को शकुनी चौधरी के बेटे और भाजपा विधायक सम्राट चौधरी के भाई रोहित चौधरी को जदयू में शामिल किया गया है

मंगलवार को बिहार उपचुनाव के बीच एक बड़ी घटना हुई. नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री और भाजपा विधायक सम्राट चौधरी के भाई रोहित चौधरी जदयू में शामिल हो गए. इस मौके पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा, विजय चौधरी और उपेंद्र कुशवाहा भी मौजूद थे. जदयू में शामिल होने के बाद रोहित चौधरी का स्वागत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से शॉल पहनाकर किया. माना जाता है कि रोहित चौधरी के जदयू में शामिल होने के पीछे ललन सिंह की कोशिश थी. बताया जाता है कि राजद नेता तेजस्वी यादव भी रोहित चौधरी को अपने साथ लाने की कोशिश में थे.

अब यहां सवाल उठता है कि रोहित चौधरी कौन हैं और तारापुर उपचुनाव के नतीजे तय करने में इनकी कितनी बड़ी भूमिका हो सकती है?

रोहित चौधरी, तारापुर के पूर्व विधायक शकुनी चौधरी के बेटे और सम्राट चौधरी के भाई हैं. शकुनी चौधरी तारापुर विधानसभा से छह बार (1985 से 2010 तक) विधायक रह चुके हैं. इनमें आखिरी तीन बार (2005-2010, 2005 में दो बार) बतौर राजद उम्मीदवार जीत दर्ज की थी. शकुनी चौधरी के बड़े बेटे सम्राट चौधरी भाजपा में शामिल हैं. बताया जाता है कि 2020 के चुनाव में शकुनी चौधरी तारापुर विधानसभा सीट अपने एक बेटे के लिए चाहते थे. लेकिन सीटों के बंटवारे में तारापुर विधानसभा जदयू के खाते में चला गया था, जिस पर नीतीश कुमार ने अपने तत्कालीन विधायक मेवालाल चौधरी को फिर से मौका दिया.

मुंगेर जिला का तारापुर विधानसभा क्षेत्र कोइरी और यादव बहुल क्षेत्र है और अब तक इन्हीं दोनों जाति के उम्मीदवारों ने यहां से जीत दर्ज की है. शकुनी चौधरी भी कोइरी (कुशवाहा) जाति से हैं. माना जाता है कि इनका असर अभी भी तारापुर के मतदाताओं पर है. माना जाता है कि 2020 में मेवालाल चौधरी की जीत में भी चौधरी परिवार का बड़ा हाथ रहा है. इस बार भी जदयू ने कोइरी जाति के उम्मीदवार राजीव कुमार सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है. इन बातों को देखते हुए ही नीतीश कुमार के लिए एक बार फिर ‘चौधरी परिवार’ का समर्थन हासिल करना जरूरी हो गया है.

वहीं, बिहार विधानसभा में राजनीतिक दलों की स्थिति देखते हुए नीतीश कुमार कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. बिहार में जिन दो सीटों- तारापुर और कुशेश्वरस्थान पर उपचुनाव हो रहे हैं, वहां पर 2020 के चुनाव में जदयू ने ही जीत हासिल की थी. ऐसी स्थिति में अगर जदयू को हार का सामना करना पड़ता है तो नीतीश कुमार पहले से और अधिक कमजोर हो सकते हैं.

2020 में जदयू के खाते में 43 सीटें आई थीं, जो अब घटकर 41 रह गई हैं. वहीं, अगर राज्य में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए की बात करें तो इसकी भी सांसे दोनों सीटों पर थमी हुई हैं. 2020 के चुनाव में इसके घटक दल भाजपा को 74, मुकेश सहनी की वीआईपी और जीतन राम मांझी की ‘हम’ को चार-चार सीटें मिली हैं. इस तरह एनडीए के पास कुल 123 सीटें हैं, जो बहुमत के आंकड़े (122) से केवल एक अधिक है.

ऐसी स्थिति में जदयू इन दोनों सीटों को गंवाना नहीं चाहेगी, क्योंकि अगर राजद ‘हम’ या ‘वीआईपी’ को अपने साथ लाने में सफल हो जाती है तो फिर नीतीश सरकार मुश्किल में पड़ सकती है. इस संभावना को बल राजद नेता तेजस्वी यादव के बयान से भी मिलता है. उन्होंने बीते सोमवार को तारापुर की जनसभा में कहा कि राजद अगर दोनों सीटें जीत जाती हैं तो बिहार की राजनीति में उथल-पुथल मच जाएगी.

बिहार के इस उपचुनाव की अहमियत इस बात से भी पता की जा सकती है कि दोनों पार्टियां जीत हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. राजद को यादव और मुसलमान समर्थित पार्टी माना जाता है. लेकिन इस बार तेजस्वी यादव ने तारापुर में किसी यादव की जगह वैश्य समाज के उम्मीदवार अरुण कुमार साह पर दांव खेला है. अगर यादव और मुसलमान के साथ सवर्ण का एक हिस्सा भी राजद के साथ आता है, तो बाजी राजद के पक्ष में आ सकती है. तेजस्वी यादव अपनी जनसभा में इस बात पर जोर भी दे रहे हैं कि इस सीट पर पहली बार वैश्य समाज को अपना प्रतिनिधि चुनने का मौका मिल रहा है.

दूसरी ओर, कांग्रेस ने ब्राह्मण उम्मीदवार राजेश कुमार मिश्र और चिराग पासवान ने राजपूत चेहरा चंदन सिंह को मैदान में उतारकर नीतीश कुमार की मुश्किलों को और बढ़ाने का काम किया है. माना जा रहा है कि अगर ये दोनों उम्मीदवार अपनी जाति का एक हिस्सा भी वोट हासिल करते हैं तो इसका सीधा नुकसान जदयू को सकता है, क्योंकि इन्हें एनडीए (भाजपा) का समर्थक माना जाता है. तारापुर में कांग्रेस अपनी ओर से पुरजोर कोशिश कर रही है. इस सीट पर पार्टी के युवा चेहरे कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल कई जनसभा को संबोधित करने वाले हैं.

वहीं, नीतीश कुमार भी मुस्लिम वोट में सेंध लगाने के लिए पूर्व विधान पार्षद (एमएलसी) सलीम परवेज की जदयू में वापसी करवाई है. इससे पहले वे जदयू छोड़कर राजद में शामिल हो गए थे. परवेज को दिवंगत नेता शहाबुद्दीन का करीबी माना जाता था. माना जा रहा है कि सलीम परवेज के जदयू में शामिल होने का थोड़ा-बहुत असर तारापुर और कुशेश्वरस्थान सीट पर भी पड़ सकता है.

इसके अलावा 2020 में तारापुर के चुनावी नतीजे भी नीतीश कुमार के माथे पर बल पड़ने की वजह बना हुआ है. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी केवल 7225 वोटों से जीत हासिल कर पाई थी. यह जीत-हार का यह आंकड़ा ही राजद के लिए उम्मीद की किरण की तरह है.

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