उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव : किसकी बस्ती?

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बस्ती की पांचों विधानसभा सीटों पर कब्जा किया था

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव करीब तीन-चार महीने की देरी है. लेकिन राज्य का सियासी पारा धीरे-धीरे चढ़ने लगा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा नेता और संगठन ने रणनीति के तहत मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं. सोमवार को प्रधानमंत्री ने सिद्धार्थनगर में एक जनसभा को संबोधित किया.

वहीं, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी-अपनी चुनावी यात्रा पर है. दूसरी ओर, बसपा सुप्रीमो मायावती ट्विटर पर हैं.

अगले साल की शुरुआत में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर देश-विदेश के लोगों की नजर होने के साथ सभी राज्य के पूर्वांचल की ओर भी देख रहे हैं. पूर्वांचल में ही प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र और मुख्यमंत्री का प्रभाव क्षेत्र होने के चलते इसकी अहमियत काफी बढ़ जाती है. राज्य की कुल 403 विधानसभा में से करीब 165 सीटें पूर्वांचल में हैं.

आज हम पूर्वांचल के बस्ती क्षेत्र की सियासी हलचल को समझने की कोशिश करेंगे. राज्य के तीनों जिलों- बस्ती, संतकबीर नगर और सिद्धार्थनगर के मुख्यालय बस्ती में पांच विधानसभा सीटें हैं. ये सीटें हैं- बस्ती सदर, रुधौली, कप्तानगंज, महादेवा और हर्रैया. साल 2017 में इन सभी सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी. इसके अलावा 2019 में बस्ती की सीट पर भाजपा उम्मीदवार हरीश द्विवेदी ने भी लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी. इस तरह हम कह सकते हैं कि बस्ती क्षेत्र पर भाजपा की पूरी पकड़ है.

लेकिन अब तक बस्ती में जो सियासी समीकरण बनते हुए दिख रहे हैं, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. पार्टी सूत्रों की मांनें तो सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए इस बार भाजपा करीब एक-तिहाई सीटों पर मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है. इनमें बस्ती की पांच में से भी तीन विधायक हो सकते हैं.

रुधौली विधानसभा सीट
माना जा रहा है कि 2022 के चुनाव में रुधौली विधानसभा सीट (Rudhali assembly constituency) पर पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है. 2017 में यहां से भाजपा के संजय प्रताप जयसवाल (Sanjay Pratap Jaiswal) ने बसपा के राजेंद्र प्रसाद चौधरी (Rajendra Prasad Chaudhary) को करीब 22,000 वोटों से मात दी थी. जयसवाल इस चुनाव से कुछ दिन पहले ही भाजपा (BJP) में शामिल हुए थे. इससे पहले उन्होंने 2012 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर बसपा (BSP) की ओर से लड़ रहे राजेंद्र प्रसाद चौधरी को 5,000 से अधिक वोटों से हराया था.

इस तरह इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है. हालांकि, बताया जाता है कि इस सीट पर 2022 के चुनाव में कुछ ऐसे और उम्मीदवार सामने आ सकते हैं, जो कभी पर्दे के पीछे रहकर भाजपा की मदद करते रहे हैं.

हर्रैया विधानसभा सीट
अगर हम हर्रैया सीट (Harraiya assembly constituency) को देखें तो यहां से पूर्व विधायक और पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह (Rajkishor Singh) इस बार बसपा (BSP) के साथ हैं. इस सीट पर इनकी उम्मीदवारी को मजबूत करने के लिए खुद बसपा के राज्यसभा सांसद सतीश मिश्रा आए थे. माना जा रहा है कि अगर राजकिशोर यहां से चुनाव लड़ते हैं तो उनका मुकाबला भाजपा के अजय सिंह (Ajay Singh) से हो सकता है. मौजूदा विधायक अजय सिंह ने 2017 में सपा के टिकट पर लड़ रहे राजकिशोर सिंह को करीब 30,000 से अधिक वोटों से मात दी थी. इस चुनाव में बसपा के विपिन कुमार शुक्ला 18.72 फीसदी वोटों के साथ तीसरे पायदान पर थे.
राजकिशोर के बसपा में आने के बाद अब माना जा रहा है कि इस सीट पर भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला तय है. इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि सपा और कांग्रेस की ओर से इस सीट को कोई बड़ी हलचल नहीं दिख रही है.

बस्ती सदर विधानसभा सीट
वहीं, अगर बस्ती सदर (Basti assembly constituency) की बात करें तो एक समय तक इस सीट पर कांग्रेस का अच्छा दबदबा था. सिद्धार्थनगर स्थित डुमरियागंज के संसदीय क्षेत्र से भाजपा सांसद जगदंबिका पाल के बस्ती में राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने से बस्ती जिले में कई अहम पदों पर कांग्रेस के नेता रहे हैं.

साल 2012 के चुनाव में जगदंबिका पाल के बेटे अभिषेक पाल (Abhishek Paul) ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था. लेकिन उन्हें बसपा के जितेंद्र कुमार (Jeetendra Kumar) ने मात दे दी थी. वहीं, 2017 के चुनाव में सपा के साथ गठबंधन होने से यह सीट कांग्रेस के खाते में थी. इस चुनाव में भाजपा के दयाराम चौधरी (Dayaram Chaudhary) ने सपा के महेंद्र नाथ यादव (Mahendra Nath Yadav) को 40,000 से अधिक वोटों से हराया था. अब 2022 के चुनाव की बात करें तो कांग्रेस की ओर से देवेंद्र श्रीवास्तव इस सीट पर अपना दावा पेश कर रहे हैं. बस्ती सदर निर्वाचन क्षेत्र के कई इलाकों में उनके पोस्टर और हॉर्डिंग्स लगी हुई हैं.

बस्ती स्थित सरकारी अस्पताल

कप्तानगंज विधानसभा सीट
2022 का कप्तानगंज विधानसभा (Kaptanganj assembly constituency) चुनाव दिलचस्प हो सकता है. 2017 के चुनाव में बसपा (BSP) का चेहरा रहे राम प्रसाद चौधरी (Ram Prasad Chaudhary) अब सपा (SP) में हैं. बताया जाता है कि इस साल के जिला पंचायत के चुनाव में उनके प्रभाव के चलते ही बतौर सपा उम्मीदवार वीरेंद्र चौधरी अपना नामांकन करवा पाएं और भाजपा उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव नहीं जीत पाई थी.

कुर्मी बहुल इस सीट पर राम प्रसाद चौधरी के प्रभाव को देखते हुए ही माना जा रहा है कि 2022 के चुनाव में वे सपा का चेहरा होंगे. साल 2012 के चुनाव में बसपा के टिकट पर उन्होंने सपा के त्रयंबक नाथ पाठक (Tryambak Nath Pathak) को 11,000 से अधिक वोटों से मात दी थी. इसके बाद 2017 के चुनाव में भाजपा के चंद्रप्रकाश शुक्ल (Chandra Prakash Shukla) ने उन्हें करीब 7,000 वोटों से हराया था. बीते रविवार तक अगले साल होने वाले चुनाव में भी इस सीट पर भाजपा (BJP) और राम प्रसाद चौधरी के बीच सीधा मुकाबला होना तय माना जा रहा था.

लेकिन सोमवार को त्रयंबक नाथ पाठक अपने समर्थकों के साथ एक बार फिर सपा में शामिल होने से यह मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है. 2017 के चुनाव में उन्होंने पर्दे के पीछे से भाजपा का समर्थन दिया था. लेकिन 2021 के स्थानीय चुनाव में भाजपा की अनदेखी के बाद वे एक बार फिर सपा में शामिल हो गए हैं.

महादेवा सीट (सुरक्षित)
आखिरी में हम बात करते हैं, सबसे कम चर्चित लेकिन सबसे खास माने जाने वाले महादेवा (Mahadewa) सीट की. इसके बारे में यह धारणा है कि जो पार्टी यहां से जीतती है, राजधानी उसकी होती है. इस लिहाज से इस सीट पर सभी पार्टी की नजर है.

अगर मौजूदा सियासी गणित की बात करें तो भाजपा के रवि कुमार सोनकर (Ravi Kumar Sonkar) मौजूदा विधायक हैं. वे दिवंगत कल्पनाथ सोनकर के बेटे हैं. संजय गांधी के परिवार से कल्पनाथ सोनकर के संबंध अच्छे रहे हैं. रवि ने 2017 में बसपा (BSP) के दूधराम (Doodhram) को 25,000 से अधिक वोटों से मात दी थी. इससे पहले 2012 के चुनाव में दूधराम को सपा (SP) के रामकरन आर्य (Ram Karan Arya) के हाथों करीब 20,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था.

बस्ती में 2022 का चुनावी संघर्ष
माना जा रहा है कि बस्ती (Basti) की इन पांच सीटों पर सत्ताधारी भाजपा (BJP) की जीत इस बात से तय होगी कि यहां मोदी-योगी फैक्टर (Modi-yogi factor) के अलावा पार्टी संगठन और इसके नेता कितने प्रभावशाली हैं.

भाजपा के बाद अगर हम सपा (SP) की बात करें तो कांग्रेस (Congress) के साथ गठबंधन के तहत वह जिले की तीन सीटों से लड़ी थी. इसमें बस्ती सदर (Basti Sadar) और हर्रेया (harraiya assembly) में दूसरे पायदान और महादेवा (Mahadewa) पर रेस से ही बाहर थी. वहीं, अगर कांग्रेस की बात की जाए तो 2017 के चुनाव में कप्तानगंज (Kaptanganj assembly constituency) और रुधौली (Rudhali assembly constituency) पर लड़ी थी. लेकिन दोनों ही जगहों पर यह तीसरे पायदान पर थी. 2017 में कप्तानगंज में पार्टी का चेहरा रहे कृष्ण किंकर सिंह राणा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. उधर, रुधौली में भी पार्टी को सईद अहमद खान (Sayeed Ahmad Khan) का कोई मजबूत विकल्प नहीं दिख रहा है.

वहीं, दल-बदल बसपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है. पार्टी के कई पुराने और प्रभावशाली नेता सपा में शामिल हो चुके हैं. मायावती ने इस पर सपा पर निशाना भी साधा है. अब बस्ती में केवल राजकिशोर सिंह और उनके समर्थकों में ही बसपा की जान बसती हुई दिख रही है. इसके अलावा पिछले चुनावों में बसपा का वोट प्रतिशत भी मायावती के लिए उम्मीद की किरण की तरह दिख रही है.

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