आइए, आज हम तिरंगा फहराने के साथ-साथ ‘नियति से मुलाकात’ को भी दोहराएं…

जवाहर लाल नेहरू का संविधान सभा में अर्द्धरात्रि को दिया गया 'ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी' आधुनिक भारत का सबसे अविस्मरणीय भाषण है

बहुत साल पहले हमने नियति से मुलाकात तय की थी और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को पूरा करें- पूरी तरह से नहीं, लेकिन काफी हद तक. ठीक अर्द्धरात्रि के समय जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और आजादी में प्रवेश करेगा. एक ऐसा पल जो इतिहास में कभी-कभार ही आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं. जब एक युग समाप्त होता है और जब समय से दबे राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिल जाती है. इस गंभीर क्षण में भारत, उसकी जनता और उससे भी बड़े उद्देश्य मानव जाति की सेवा के लिए शपथ लेना उपयुक्त है.

इतिहास की भोर में ही भारत ने अपनी अंतहीन खोज आरंभ कर दी थी और अलिखित सदियां, उसके प्रयासों और उसकी सफलताओं व विफलताओं के वैभव से भरी हुई हैं. अच्छे और बुरे, दोनों समय में उसने कभी भी अपनी खोज से नजर नहीं हटाई और न ही उन आदर्शों को भुलाया, जो उसे शक्ति प्रदान करते हैं. आज हम दुर्भाग्य की एक अवधि का अंत करते हैं. भारत फिर से खुद को जानने की ओर बढ़ रहा है. आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वह केवल एक चरण है. जो व्यापक सफलताएं और उपलब्धियां हमारा इंतजार कर रही है, उनका अभी केवल द्वार खुला है. क्या हम इतने बहादुर और बुद्धिमान हैं कि इस अवसर को झपट लें और भविष्य की चुनौती को स्वीकार कर लें?

आजादी और सत्ता अपने साथ जिम्मेदारियां लाती हैं. यह जिम्मेदारी भारत की सार्वभौम जनता की प्रतिनिधि संस्था यानी इस सभा की है. आजादी से पहले की प्रसव-पीड़ा को हमने सहा है और उन दु:खों की याद से हमारे दिलों पर बोझ है. उनमें कुछ पीड़ाएं अब भी मौजूद हैं. फिर भी, भूतकाल गुजर चुका है और वह भविष्य है, जो हमें पुकार रहा है.

वह भविष्य आसान या आरामदायक नहीं, बल्कि, अथक मेहनत का होगा, जिससे हम उन वचनों को पूरा कर सकें, जो हमने लिए हैं और आज भी लेने जा रहे हैं. भारत की सेवा का मतलब है- करोड़ों पीड़ितों की सेवा. उसका मतलब है- गरीबी, अशिक्षा, बीमारी और अवसरों की समानता को समाप्त करना. हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की महत्वाकांक्षा रही है कि हर आंख से आंसू पोंछा जाए. यह हमारी क्षमता से बाहर हो सकता है. लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है. हमारा काम खत्म नहीं होगा.

सो, अपने सपनों को साकार करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी है. वे सपने भारत के साथ-साथ दुनिया के लिए भी हैं, क्योंकि आज सारे देश इतनी नजदीकी से जुड़े हुए हैं कि उनमें से कोई अलग-थलग रहने की कल्पना भी नहीं कर सकता. यह कहा गया है कि शांति अविभाज्य है, वैसे ही स्वतंत्रता व समृद्धि और विश्व, जिसे अब अलग-अलग टुकड़ों में बांटकर नहीं रखा जा सकता, में विनाश भी अविभाज्य है.

भारत की जनता, जिसके हम प्रतिनिधि हैं, से हम अपील करते हैं कि वे इस महान कार्य में निष्ठा और विश्वास के साथ हमारे सहयोगी बनें. यह समय संकीर्ण और विनाशकारी आलोचना का नहीं है और न ही दुर्भावना व दूसरों पर दोष मढ़ने का. हमें स्वतंत्र भारत का एक भव्य महल बनाना है, जिसमें भारत माता के सभी बच्चे रह सकें.

महोदय मैं यह प्रस्ताव रखने का अनुरोध करता हूं कि यह प्रतिज्ञा की जाए-

अर्द्ध रात्रि का आखिरी घंटा बजते ही इस अवसर पर उपस्थित संविधान सभा के सभी सदस्य यह प्रतिज्ञा करते हैं-

“इस पावन क्षण में, जब भारत की जनता ने अपार कष्ट और बलिदान के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की है, मैं भारत की संविधान सभा का एक सदस्य पूरी विनम्रता के साथ, इस उद्देश्य के लिए कि यह पुरातन देश विश्व में अपना उचित स्थान प्राप्त कर सके और विश्व शांति और मानव कल्याण में अपना पूर्ण व स्वैच्छिक योगदान दे सके, भारत और उसकी जनता की सेवा के लिए खुद को समर्पित करता हूं.”

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