भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त होगी, यह कैसे तय हुआ?

पुस्तक अंश : बारह बजे रात के, लेखक - डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स

भारत के ब्रिटिश साम्राज्य के इतिहास में दूसरी और आखिरी बार कोई वायसराय प्रेस कॉन्फ्रेंस (4 जून, 1947) में बोल रहा था. वायसराय लॉर्ड माउंटबेटेन भारत और अन्य देशों के पत्रकारों को उस जटिल योजना (भारत विभाजन) की जानकारी दे रहे थे, जिसने हमारे इस ग्रह पर एक नए राष्ट्र समूह, तीसरे विश्व को जन्म दिया.

माउंटबेटेन के लिए यह भारत में अपने कार्यकाल का सबसे गौरवशाली पल था. दो महीनों से भी कम समय में उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया था. उन्होंने जब अपना भाषण खत्म किया तो हॉल तालियों से गूंज उठा. इसके बाद वायसराय ने बिना किसी संकोच के लोगों से सवाल करने को कहा.

जब सवालों की बौछार का लंबा सिलसिला खत्म होने लगा तो किसी गुमनाम भारतीय संवाददाता की आवाज उन तक पहुंची. यह आखिरी सवाल था, जिसका अब तक कोई जवाब नहीं दिया गया था. लॉर्ड माउंटबेटेन को छह महीने पहले जिस वर्ग पहेली को हल करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उसमें अब यही बॉक्स भरने को रह गया था.

संवाददाता ने पूछा, ‘सर, अगर सभी लोग इस बात को मानते हैं कि इस वक्त और सत्ता सौंपे जाने के बीच तेजी से काम किया जाना जरूरी है, तो आपने इसके लिए कोई तारीख भी जरूर सोच रखी होगी?’

‘जी हां, यकीनन.’ माउंटबेटेन ने जवाब दिया.

‘और अगर आपने वह तारीख तय कर ली है तो वह तारीख क्या है? संवाददाता ने सवाल को और कुरेदा.

वायसराय इस सवाल को सुनते अपने दिमाग में बड़ी तेजी से हिसाब लगा रहे थे. दरअसल उन्होंने कोई तारीख तय नहीं की थी. लेकिन उन्हें इतना जरूर मालूम था कि यह काम जल्दी ही हो जाना चाहिए. उन्होंने खचाखच भरे हुए हॉल को बड़े ध्यान से देखा. उत्सुकता भरी खामोशी छायी हुई थी. केवल ऊपर छत पर चलते हुए बिजली के पंखों की आवाज उसे भंग कर रही थी. बाद में इस घटना को याद करते हुए लॉर्ड माउंटबेटेन ने कहा था, ‘मैं यह ठान चुका था कि मैं यह साबित कर दूंगा कि सब-कुछ मेरा ही किया-धरा है.

‘जी हां, मैंने सत्ता सौंप देने की तारीख तय कर ली है.’ वायसराय ने कहा.

जिस समय वे यह कह रहे थे, उस समय भी बहुत सी तारीखें उनके दिमाग में तेजी से चक्कर काट रही थीं.  सितंबर के शुरू में? सितंबर के बीच में? अगस्त के बीच में? अचानक ऐसा लगा कि जुआ खेलने की मेज पर तेजी से घूमती हुई सुई एक जगह आकर रूक गई और गोली एक खाने में जाकर इस तरह से टिक गई कि माउंटबेटेन ने उसी समय फैसला कर लिया. इस तारीख के साथ उनके अपने जीवन की सबसे गौरवशाली विजय की याद जुड़ी हुई थी. बर्मा (अब म्यांमार) के जंगलों में लंबी लड़ाई इसी दिन (15 अगस्त) को खत्म हुई थी और जापानी साम्राज्य ने बिना किसी शर्त के आत्म समर्पण कर दिया था. नए लोकतांत्रिक एशिया के जन्म के लिए जापान के आत्म-समर्पण की दूसरी वर्षगांठ से अच्छी तारीख क्या हो सकती थी?

लॉर्ड माउंटबेटेन की आवाज अचानक भावनाओं के आवाज से रूंध गई. उन्होंने एलान किया- ‘भारतीय के हाथों में सत्ता अंतिम रूप से 15 अगस्त, 1947 को सौंपी जाएगी.’

भारत की आजादी की तारीख का अचानक अपनी मर्जी से एलान करके माउंटबेटेन ने जैसे एक विस्फोट कर दिया. हाउस ऑफ कॉमन्स, प्रधानमंत्री के निवास स्थान डाउनिंग स्ट्रीट और बकिंघम पैलेस में किसी ने सोचा नहीं था कि माउंटबेटेन भारत में ब्रिटेन के घटनामय इतिहास पर इस तरह अचानक परदा गिरा देंगे. दिल्ली में भी वायसराय के निकटम सहयोगियों तक को कुछ पता नहीं था कि माउंटबेटेन क्या करने वाले हैं. उन भारतीय नेताओं को भी नहीं, जिनके साथ उन्होंने काफी समय बिताए थे. इस बात का कोई संकेत नहीं मिला था कि वे इतनी जल्दबाजी से काम लेंगे.

लेकिन माउंटबेटेन ने एक अक्षम्य अपराध यह किया था कि उन्होंने भारत के ज्योतिषियों से पूछे बिना ही तारीख चुनकर उसका एलान भी कर दिया. ज्योतिषियों का मानना था कि 1947 में 15 अगस्त का दिन शुक्रवार था और यह दिन अशुभ होता है.

जैसे ही रेडियो पर माउंटबेटेन की तय की हुई तारीख का एलान हुआ. सारे हिंदुस्तान में ज्योतिषी अपने पंचांग खोलकर बैठ गए. काशी और दक्षिण के ज्योतिषियों ने फौरन एलान कर दिया कि 15 अगस्त का दिन इतना अशुभ है कि भारत के लिए अच्छा यही होगा कि हमेशा के लिए नरक की यातनाएं भोगने की जगह वह एक दिन के लिए अंग्रेजों का शासन और सहन कर लें.

कलकत्ता (अब कोलकाता) में स्वामी मदनानंद ने इस तारीख की घोषणा सुनते ही अपना नवांश निकाला और ग्रहों, नक्षत्रों और राशियों की स्थिति देखते ही वे चीख पड़े, ‘क्या अनर्थ किया है, इन लोगों ने? कैसा अनर्थ किया है, इन लोगों ने?’ उन्होंने तत्काल माउंटबेटेन को एक पत्र लिखा, ‘भगवान के लिए भारत को 15 अगस्त को आजादी मत दिजीए. अगर इसके बाद बाढ़ व अकाल का प्रकोप और नरसंहार हुआ तो इसका कारण केवल यह होगा कि स्वतंत्र भारत का जन्म एक अशुभ दिन हुआ था.’

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