कैसे देश की नारी शक्ति बुनियादी सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ती हुई दिखती है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 76वें स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में कहा कि भारत की नारी शक्ति एक नए सामर्थ्य, नए विश्वास के साथ आगे आ रही है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 76वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपने भाषण में नारी शक्ति का उल्लेख किया. उन्होंने कहा, ‘आज ज्ञान का क्षेत्र देख लीजिए, विज्ञान का क्षेत्र देख लीजिए, हमारे देश की नारीशक्ति सिरमौर नजर आ रही है। आज हम पुलिस में देखें, हमारी नारीशक्ति लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठा रही है। हम जीवन के हर क्षेत्र में देखें, खेल-कूद का मैदान देखें या युद्ध की भूमि देखें, भारत की नारी शक्ति एक नए सामर्थ्य, नए विश्वास के साथ आगे आ रही है.’

अगर हम अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं सहित उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में कुछ चेहरों को देखें तो प्रधानमंत्री की बात सही दिखती हैं. लेकिन यह संख्या आधी आबादी का एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा है. देश में महिलाएं आज भी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में ही अपनी जिंदगी खपा रही है. बुंदेलखंड और मराठवाड़ा क्षेत्र में आज भी केवल पानी का इंतजाम करने में ही कई घंटे खर्च करने पड़ते हैं. इसके अलावा स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों या सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए भी महिलाओं को आजादी के 75 साल बाद भी संघर्ष करना पड़ रहा है. विभिन्न सरकारी संगठनों के आंकड़े ही इस बात की गवाही देते हैं कि लाल किले के प्राचीर से नारीशक्ति की उद्घोषणा देश के सुदूर इलाकों में पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती है.

स्वास्थ्य

अगर देश की आधी आबादी का एक बड़ा हिस्सा बीमार होता है तो इसका असर देश के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ता है. लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के आंकड़े बताते हैं कि भले ही भारत की गिनती लगातार आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में हो रही है, लेकिन अधिकांश महिलाएं इसके लाभों से वंचित दिखती हैं.

इस रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 से 49 साल की आयु समूह की 57 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में 58.5 फीसदी महिलाएं शरीर में खून की कमी से जूझ रही हैं. उधर, डॉयचे वेले की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में केवल 37 फीसदी महिलाओं को चिकित्सा संबंधी सुविधाएं मिल पाती हैं। वहीं, पीरियड्स के दिनों में 77 फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं.

शिक्षा

शिक्षा के मामले में भी महिलाओं की स्थिति में संतोषप्रद सुधार नहीं हुए हैं. आजादी के 75 साल बाद भी तीन में से दो महिलाएं ही साक्षर (65.46 फीसदी- 2011 की जनगणना) हैं. वहीं, एनएफएचएस-5 की मानें तो 15 से 49 साल की उम्र की महिलाओं में साक्षरता 71.5 फीसदी है. लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षर महिलाओं की हिस्सेदारी इससे कम 65.9 फीसदी ही है.

वहीं, कोरोना महामारी का सबसे बुरा असर बच्चों की शिक्षा पर देखने को मिला है. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट यानी स्कूल की पढ़ाई छोड़ने का दर 14.6 फीसदी रहा है. यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि यासुमारा किमुरा ने बताया है कि इसमें लड़कियों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई है.

एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के मुताबिक 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उनकी शादी 18 साल से कम उम्र में कर दी गई थी. बाल विवाह की वजह से भी कई लड़कियों की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती है. इसका असर उनके लिए रोजगार की संभावनाओं पर भी पड़ता है.

रोजगार और अन्य आर्थिक पक्ष

रोजगार के मामले में भी पुरुषों की तुलना में देश की महिलाओं कहीं पीछे छूटती नजर आती हैं. एनएफएचएस की रिपोर्ट के मुताबिक सर्वेक्षण के दौरान एक साल काम करने वाली महिलाओं की संख्या 25.4 फीसदी थी. यानी चार में से केवल एक महिला ही रोजगार की स्थिति में है. वहीं,

आवधिक श्रम बल सर्वे (2020-21) की रिपोर्ट के मुताबिक 10 में से तीन महिला स्नातकों को ही रोजगार मिल पाता है।

दूसरी ओर, अन्य आर्थिक स्थिति की बात करें तो देश में केवल 43.3 फीसदी महिलाओं के नाम पर किसी तरह की संपत्ति दर्ज है. वहीं, 78.6 फीसदी के पास ही अपना बैंक अकाउंट है. जबकि, 54 फीसदी के पास ही मोबाइल फोन है. वहीं तीन में केवल एक महिला ने कभी न कभी इंटरनेट का उपयोग किया है.

उधर, ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक खाद्यान्न उत्पादन में महिलाओं की हिस्सेदारी 60 से 80 फीसदी है. 85 फीसदी महिलाओं कृषि कार्यों में शामिल हैं. लेकिन केवल 13 फीसदी के पास अपनी जमीन है. सबसे खराब स्थिति बिहार की है, जहां केवल सात फीसदी महिलाओं के पास ही जमीन का अधिकार है.

महिला सुरक्षा

सुरक्षा का मुद्दा महिलाओं के लिए हमेशा से गंभीर बना हुआ है. अक्टूबर, 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने  भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को एक ‘कभी न खत्म होने वाले एक चक्र’ के रुप में परिभाषित किया था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में देश की एक लाख की आबादी पर 56 महिलाओं को अपराधिक घटनाओं का सामना करना पड़ा. राज्यों में सबसे अधिक असम की 154 महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया गया.

वहीं, एनएफएचएस -5 के सर्वेक्षण में 100 में से 29 महिलाओं ने खुद के घरेलू हिंसा का शिकार होने की बात को स्वीकार करती हैं. इसके अलावा गर्भवती महिलाओं में तीन फीसदी को इसका सामना करना पड़ा है.

शौचालय और स्वच्छ ईंधन की सुविधाएं

केंद्र और राज्य सरकारों के 100 फीसदी खुले में शौच से मुक्ति के दावे की पोल सरकार की ही एनएफएचएस की रिपोर्ट खोलती है. इसके मुताबिक करीब 30 फीसदी महिलाओं को शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है. वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 35 फीसदी है.

दूसरी ओर, बढ़ती महंगाई का सबसे बड़ा असर भी आधी आबादी पर ही पड़ता हुआ दिखता है. देश के कई ग्रामीण इलाकों में रसोई गैस की कीमत बढ़ने से महिलाएं एक बार फिर धुएं की बीच खाना पकाने को मजबूर हो रही हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2021-22 में 3.59 करोड़ घरेलू गैस उपभोक्ताओं ने सिलिंडर नहीं भरवाया. वहीं, 1.20 करोड़ उपभोक्ताओं ने पूरे साल केवल एक सिलिंडर गैस का इस्तेमाल किया.

एनएफएचएस की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 58.6 फीसदी परिवारों के पास ही स्वच्छ ईंधन की सुविधा है. ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा इससे कहीं कम यानी 43.2 फीसदी है.

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