कैसे सिद्धू की राजनीति को हम उनके क्रिकेट जीवन की एक बड़ी घटना से समझ सकते हैं

साल 1996 में इंग्लैंड दौरे के बीच से ही वापस भारत आकर नवजोत सिंह सिद्धू ने क्रिकेट से संन्यास का एलान कर दिया था

पिछले दो महीने से देश की राजनीति पंजाब के आस-पास घूमती हुई दिख रही है. और इसके केंद्र में पूर्व क्रिकेटर और अब राजनेता नवजोत सिंह सिद्धू हैं. पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के न चाहने के बावजूद कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धू को पंजाब में पार्टी की कमान सौंप दी. इसके बाद कांग्रेस ने बड़ा फैसला लेते हुए अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया. माना जाता है कि नवजोत सिंह सिद्धू ने ही चरणजीत सिंह चन्नी का नाम आगे बढ़ाया था.

हालांकि, इसके कुछ दिन बाद ही (28 सितंबर) सिद्धू ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा था, ‘किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व में गिरावट समझौते से शुरू होती है. मैं पंजाब के भविष्य को लेकर कोई समझौता नहीं कर सकता हूं.’ इसके तुरंत बाद ही पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सिद्धू पर निशाता साधते हुए कहा था, ‘मैंने पहले ही कहा था कि यह व्यक्ति स्थिर नहीं है.’

नवजोत सिंह सिद्धू का अब तक का राजनीतिक जीवन अस्थिर ही दिखता है. उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत साल 2004 में भाजपा के साथ शुरू होती है. उन्होंने 2004 के आम चुनाव अमृतसर लोकसभा सीट पर जीत दर्ज किया. इसके बाद 2014 तक उन्होंने लोकसभा में अमृतसर का प्रतिनिधित्व किया. लेकिन 16वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा नेतृत्व ने उनकी जगह अपने शीर्ष नेता अरुण जेटली को अमृतसर के चुनावी मैदान में उतार दिया.

हालांकि, इसके बाद सिद्धू की नाराजगी को दूर करने के लिए पार्टी ने अप्रैल, 2016 में राज्यसभा भेज दिया. लेकिन तीन महीने के भीतर उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. इस चुनाव में उन्होंने अमृतसर पूर्व सीट पर 42,809 वोटों से जीत दर्ज की थी.

इस तरह पिछले 16 वर्षों की उनकी राजनीतिक यात्रा को देखें तो अमरिंदर सिंह के बातों को बल मिलता है कि सिद्धू अस्थिर रहे हैं. साथ ही, उनके फैसले भी अप्रत्याशित रहे हैं. चाहे वह राज्यसभा से अचानक इस्तीफा देना हो या फिर पिछले महीने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से. लेकिन अगर हम उनकी 16 साल की ही क्रिकेट यात्रा में एक बड़ी घटना को देखें तो हमें नवजोत सिंह सिद्धू की राजनीति को समझने में आसानी हो सकती है.

यह घटना मई, 1996 की है. भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर थी, जहां उसे तीन वनडे और तीन टेस्ट मैच खेलने थे. टीम के कैप्टन मोहम्मद अजरूद्दीन थे और उस वक्त भी कैप्टन और सिद्धू के बीच टकराव चल रहा था. लंदन में आयोजित पहला मैच (23 मई) बारिश की वजह से धुल गया था. इस मैच में भारतीय टीम बैकपुट पर थी, जहां 292 के लक्ष्य का पीछा करते हुए 96 रनों पर भारत के शीर्ष पांच बल्लेबाज पवैलियन लौट चुके थे. इसमें नवजोत सिंह सिद्धू भी थे, जिनके बल्ले से केवल तीन रन निकले.

इसके बाद 25 मई को लीड्स में आयोजित दूसरे वनडे मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए भारतीय टीम केवल 158 रनों पर सिमट गई और इंग्लैंड छह विकेट से इस मैच को जीत गया. इस मैच में भारतीय शीर्षक्रम के तीन बल्लेबाज रन आउट हुए थे. पहले सचिन तेंदुल्कर (छह रन), फिर सिद्धू (20 रन) और इसके बाद संजय मांजरेकर (24 रन).

जनसत्ता के संपादक प्रभाष जोशी ने अपने लेख (दो जून, 1996) ‘सिद्धू बड़े कि टीम?’ में लिखा है, ‘सचिन को उनके जोड़ीदार राठौर ने रन के लिए बुलाकर वापस भेजा, लेकिन जब तक वे क्रीज में लौटे डंडे उड़ चुके थे. सिद्धू और मांजरेकर दोनों अपनी गलती से रन आउट हुए.’ प्रभाष जोशी इन दोनों बल्लेबाजों के बारे में आगे लिखते हैं, ‘दोनों ही रन के लिए दौड़ने में अनिश्चय और घबराहट के शिकार होते हैं और हास्यास्पद स्थितियां पैदा करने के लिए बदनाम हैं. खुद तो आउट होते ही हैं, लेकिन सामने वाले को भी मरवा देते हैं.’

वे आगे बताते हैं कि सिद्धू अपने पहले टेस्ट मैच (1983, वेस्टइंडीज के खिलाफ) की पहली पारी में भी रन आउट हुए थे. इसके बाद वे अपने दूसरे टेस्ट मैच में भी रन आउट हुए थे. पिछले 13 वर्षों (1983-1996) के दौरान वे टीम से भीतर-बाहर होते रहे हैं.

इस लेख की मानें तो दूसरे वनडे में हार के बाद टीम मीटिंग में कैप्टन अजहरूद्दीन ने कहा था, ‘वर्षों से खेल रहे बल्लेबाजों तक को विकेटों के बीच दौड़ना नहीं आता और वे मूर्खों जैसे रन आउट होते हैं.’ बात यहां तो ठीक थी. लेकिन 26 मई, 1996 को तीसरे वनडे (मेनचेस्टर) में वह हुआ, जिसकी वजह से सिद्धू के अंदर का गुस्सा लावा बनकर फूट पड़ा और वे दौरे के बीच में ही वापस भारत आ गए.

तीसरे वनडे में भारत पहले बल्लेबाजी करने के लिए उतरा. 11 रन पर तेंदुल्कर का विकेट गिरने पर सिद्धू नहीं बल्कि, सौरव गांगुली को मैदान में भेजा गया. इसके बाद राठौर के आउट होने के बाद चार नंबर पर कैप्टन अजरूद्दीन खुद आए, फिर अजय जडेजा और राहुल द्रविड़ को भेजा गया. इस बीच सिद्धू पैड बांधे बैठे रहे और उनका नंबर नहीं आया. बताया जाता है कि तीसरे वनडे से सिद्धू को बाहर कर दिया गया था, लेकिन इसकी जानकारी उनको नहीं दी गई. यहां तक की उनकी खिल्ली भी उड़ाई गई और इसकी अगुवाई खुद कैप्टन कर रहे थे. तीन मैचों की वनडे सीरिज के बाद भारत को इंग्लैंड के साथ टेस्ट सीरिज भी खेलना था. लेकिन सिद्धू वापस घर आ गए.

इंग्लैंड से वापस आने के बाद उन्होंने क्रिकेट से संन्यास लेने का एलान कर दिया था. सिद्धू ने कहा था, ‘खेल छोड़कर मैंने अपने आप को ऐसी सजा दी है, जिसके घाव का निशान मेरी आत्मा पर हमेशा बना रहेगा.’ प्रभाष जोशी ने अपने लेख में इसे भारतीय ही नहीं, बल्कि पूरे क्रिकेट के लिए खराब बताया. उनका कहना था कि इससे खेल, टीम और देश नहीं, अचानक खिलाड़ी इन तीनों से ऊपर उठ जाता है. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि कोई खिलाड़ी चाहे जितना बड़ा या दुखी या अपमानित हो, वह खेल और अपने देश की टीम से बड़ा नहीं हो सकता.’

हम इस चीज को सिद्धू के राजनीतिक फैसलों में भी देख सकते हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह की असहमति के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व उन्हें पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त करती है. इसके बाद उनकी मर्जी के अनुरूप चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया जाता है. लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वे अचानक अपना इस्तीफा दिल्ली भेज देते हैं. अपने इस्तीफे का कारण भी वे खुलकर नहीं बताते और पार्टी से भी बड़े दिखते हैं.

ऐसा ही उन्होंने 1996 में इंग्लैंड का दौरा बीच में छोड़कर आने के बाद भी किया था. इस मामले की जांच के लिए चार सदस्यीय समिति बनाई गई थी. इसमें राज सिंह डूरंगपुर, आईएस बिंद्रा, सुनील गावस्कर, जयवंत लेले शामिल थे. लेकिन कई बार समिति के पूछे जाने पर भी सिद्धू ने इंग्लैंड से वापस आने की पूरी वजह खुलकर नहीं बताई. हालांकि, बाद के दिनों में उन्होंने मोहिंदर अमरनाथ को बताया कि अजरूद्दीन ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया था.

इसकी पुष्टि पूर्व बीसीसीआई सचिव और जांच समिति में शामिल जयवंत लेले भी करते हैं. उन्होंने अपनी किताब ‘आई वाज देअर : मेमोयर्स ऑफ ए क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेशन’ में लिखा है कि सिद्धू के इंग्लैंड से वापस आने की वजह उनके साथ कैप्टन अजरूद्दीन का बुरा व्यवहार ही था.
वहीं, वरिष्ठ खेल पत्रकार पार्टब रामचंद्र अपने एक लेख में बताते हैं कि संन्यास का एलान कर चुके सिद्धू से तत्कालीन बीबीसीआई प्रमुख आईएस बिंद्रा ने बात की. इसके बाद एक बार फिर सिद्धू क्रिकेट के मैदान में वापस उतरे और आगे करीब तीन साल तक खेलते रहें.

अब ठीक ऐसा ही उन्होंने पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद दिल्ली में पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं- हरीश रावत और केसी वेणुगोपाल से मिले. इसके बाद राहुल गांधी से मुलाकात करने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा वापस ले लिया. सिद्धू ने मीडिया को बताया कि उन्होंने राहुल गांधी को अपनी सारी बातें बता दी हैं और सारे मुद्दे सुलझा लिए गए हैं.

सिद्धू के बारे में प्रभाष जोशी का मानना था कि वे नेचुरल एथलीट – जन्मजात खिलाड़ी नहीं थे. वे लिखते हैं, ‘उनकी बल्लेबाजी भी अभ्यास और प्रयास से साधी गई थी. छक्का मारने में जितना जोर सिद्धू को लगाना पड़ता था, उससे साफ लगता था कि वे गेंद को टाइम करने वाले नहीं, बल्कि मारने वाले बल्लेबाज हैं.’ इन बातों को हम सिद्धू राजनीतिक जीवन पर भी लागू कर सकते हैं और वे अपने फैसलों और बयानों से इसे साबित भी करते हुए दिखते हैं.

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