इलेक्टोरल बॉण्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘दशहरा से पहले इस पर सुनवाई नहीं’

इलेक्टोरल बॉण्ड से भाजपा को मिलने वाले चंदे में 10 गुना बढ़ोतरी हुई है, दूसरी ओर कांग्रेस को पहले से कम रकम हासिल हुई है

सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉण्ड को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई पर दशहरा के बाद होगी. शीर्ष अदालत ने कहा है कि वह आठ अक्टूबर को इस याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकता है. मुख्य न्यायधीश एनवी रमना की पीठ ने कहा, ‘शुक्रवार ( आठ अक्टूबर) दशहरा की छुट्टी से पहले का आखिरी दिन है. हम इस पर सुनवाई नहीं कर सकते हैं.’ इससे पहले एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर)’ की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने पीठ से इस याचिका को मामलों की उस सूची से न हटाने की मांग की थी, जिन पर सुनवाई के लिए आठ अक्टूबर की तारीख तय है.


वहीं, मार्च, 2021 में एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट से पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, केरल और असम में विधानसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बॉण्ड बेचे जाने पर रोक लगाने की मांग की थी. लेकिन तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की पीठ ने इस मांग को खारिज कर दिया. इस पीठ का कहना था कि यह बॉण्ड अब तक बिना किसी बाधा के जारी है और इस पर रोक लगाने को लेकर शीर्ष अदालत को कोई आधार नहीं मिला है.
इससे पहले साल 2017 में एडीआर ने इलेक्टोरल बॉण्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी. इसमें संगठन ने कहा था कि राजनीतिक दलों को अवैध और विदेशी फंडिंग होने से लोकतंत्र को नुकसान पहुंचेगा.
उधर, राजनीतिक पार्टियों की ऑडिट रिपोर्ट से यह बात सामने आ रही है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के आने के बाद से सत्ताधारी पार्टी भाजपा को दूसरे दलों के मुकाबले काफी अधिक चुनावी चंदे मिल रहे हैं. इसे चुनावों में बराबरी की लड़ाई का भी उल्लंघन माना जा रहा है.
इस साल चुनाव आयोग के सामने पेश की गई एक ऑडिट रिपोर्ट में भाजपा ने बताया है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए उसे 2555 करोड़ रुपये हासिल हुए हैं. इससे पहले 2017-18 में पार्टी को इससे 210 करोड़ रुपये मिले थे. यानी दो इस अवधि को दौरान भाजपा को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाली रकम में 10 गुना से अधिक की बढ़ोतरी हुई है. दूसरी ओर, देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को 2019-20 में 318 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए हासिल हुए है. इससे यह रकम 2018-19 में पार्टी को मिलने वाले चंदे (383 करोड़ रुपये) से 65 करोड़ रुपये कम है.

वित्तीय वर्ष 2017-18 के बजट सत्र में मोदी सरकार ने वित्त विधेयक- 2017 के जरिए राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चंदे के कानूनी प्रावधानों में कई संशोधन किए गए थे. तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन्हें चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने वाला कदम करार दिया था.

वहीं, कांग्रेस ने भी इन संशोधनों को वित्त विधेयक में लाने पर सवाल उठाया था. कांग्रेस की मांग थी कि इस संबंध में अलग से एक विधेयक संसद में लाने के साथ इसके प्रावधानों पर चर्चा हो. लेकिन, केंद्र की मोदी सरकार इसके लिए तैयारी नहीं हुई और संसद में इसे वित्त विधेयक के रूप में ही पारित किया गया था.

संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक वित्त विधेयक को केवल लोकसभा से पारित करना होता है. राज्यसभा अगर 14 दिनों तक इसे पारित नहीं करता है तो इसे पारित मान लिया जाता है.

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