‘सीट आरक्षित होने से पंचायत चुनाव में जातिवाद का असर कम दिख रहा है’

बिहार के सीतामढ़ी स्थित मिश्रौलिया ग्राम पंचायत में चौथे चरण के तहत 20 अक्टूबर को मतदान होना है

बिहार के गांवों में एक बार फिर चुनावी उत्सव का माहौल है. हालांकि इस बार मतदाता दिल्ली या पटना के लिए नहीं, बल्कि अपने गांव की सरकार चुनने जा रहे हैं. इस बार   कुल 11 चरणों में चुनाव होने हैं. इनमें से दो चरणों के नतीजे भी घोषित किए जा चुके हैं. ग्राम पंचायतों की गली से लेकर चौराहे तक हर जगह पंचायत चुनाव की ही बातें हैं. सीतामढ़ी जिले का मिश्रौलिया पंचायत भी इससे अछूता नहीं है. लेकिन यहां इन बातों में विकास की जगह जातिवाद ही हावी दिख रहा है. यहां की करीब 20,000 आबादी में अधिकांश ओबीसी (यादव, कुर्मी, कोइरी) तबके से आते हैं. लेकिन सीट आरक्षित होने के लिए इस तबके के लोग चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. इसके चलते जातिवाद केवल बातों में ही रहता है. मतदान पर इसका असर कम दिखता है. मिश्रौलिया में चौथे चरण के तहत 20 अक्टूबर को मतदान होना है.

मिश्रौलिया ग्राम पंचायत स्थित स्वास्थ्य केंद्र । फोटो – अवनीश कुमार

बिहार के सीतामढ़ी जिला मुख्यालय से केवल सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित मिश्रौलिया पंचायत आजादी के 74 साल भी विकास में बहुत पिछड़ा हुआ है. आज भी यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन – खेती और मजदूरी ही है. यहां के किसानों के पास छोटी जोत होने के चलते मुश्किल से परिवार के लिए ही अनाज पैदा कर पाते हैं. वहीं, स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके न होने पर बड़ी संख्या (एक-तिहाई से अधिक) में लोग मजदूरी के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने के लिए मजबूर हैं.

मिश्रौलिया में केवल रोजगार नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था की भी बुरी स्थिति है. इस गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) तो है. लेकिन यह केवल आंगनबाड़ी केंद्रों पर होने वाली टीकाकरण के लिए खुलता है. स्वास्थ्य केंद्र में न तो कोई डॉक्टर आते हैं और न ही कोई दवा मिलती है. वहीं, यहां के बच्चों के लिए कोई हाई स्कूल भी नहीं है. वहीं, ‘मुख्यमंत्री ग्रामीण सोलर स्ट्रीट लाइट योजना’ के चलते  मिश्रौलिया के पड़ोस में स्थित दूसरे पंचायतों की जगमगाती सड़कें यहां की कच्ची सड़कों को चिढ़ाती हुई दिखती हैं. पक्की न होने से गांव की सड़कें हल्की बारिश के बाद भी कीचड़मय हो जाती हैं.

नाली और जल निकासी के अभाव में मिश्रौलिया की एक सड़क की स्थिति । फोटो : अवनीश कुमार

बिहार में सबसे पहले 2018 में सीतामढ़ी जिले को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया था. यानी कहा जा सकता है कि उसी साल मिश्रौलिया पंचायत के सभी घरों में भी शौचालय बन गया. लेकिन यह सब केवल कागजों पर ही हुआ है. आज भी यहां के सैकड़ों परिवारों के पास शौचालय नहीं है. इसके चलते इन परिवारों की महिलाओं और बच्चों को भी खुले में शौच के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. विडंबना तो यह भी है कि कुछ जगहों पर सार्वजनिक शौचालय भी ताला खुलने के इंतजार में हैं.

ग्राम पंचायत स्थित सार्वजनिक शौचालय की स्थिति । फोटो : अवनीश कुमार

वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चय योजना कागजों पर ही चल रही है. ग्राम पंचायत के वार्ड संख्या नौ में 30 से 40 प्रतिशत घरों में नल जल होने की बात तो दूर है, यहां अब तक पाइपलाइन भी नहीं पहुंची है. वहीं. पंचायत के कुछ वार्डों में नल तो लग गया है, लेकिन उसमें जल नही आ रहा है.

इन समस्याओं या सरकारी योजनाओं की विफलताओं से आगे बढ़कर अगर समाधान की बात करूं तो पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों के भीतर संकल्प शक्ति और विकासवाद की सोच की जरूरत है, जो जातिवाद के बंधनों से मुक्त हो. वहीं, लोगों को भी अपने अधिकारों के लिए जागरूक और संगठित होने की जरूरत है. मिश्रौलिया पंचायत में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों पर बहुत अधिक काम किए जाने की जरूरत है. ग्राम पंचायत स्तर पर चुनौतियों के साथ-साथ इसके इसके लिए कुछ करने के अवसर भी अधिक हैं. पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों को जीत हासिल करने के बाद लोगों का विकास करने जरूरत है, न कि सरकारी योजनाओं में अपना हिस्सा तय करने की.

अवनीश कुमार नोएडा में पत्रकारिता के छात्र हैं. फिलहाल वे सीतामढ़ी के मिश्रौलिया में पंचायत चुनाव को करीब से देख रहे हैं.

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