उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव -2022 को लेकर राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी कमर कसती हुई दिख रही हैं. करीब पांच महीने बाद होने वाले इस चुनाव के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के नेता-कार्यकर्ता सड़कों पर दिखने शुरू हो चुके हैं. इसके अलावा इनके साथ पार्टी के बैनर और अन्य प्रचार सामाग्री के साथ समर्थकों का हुजुम भी दिखना शुरू हो चुका है. उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों की तरह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी (बनारस) भी इससे अछूता नहीं है.
केंद्र की मोदी सरकार के साथ राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार हमेशा से दावा करती रही हैं कि वाराणसी की जनता विकास से जुड़े कामों से काफी खुश है. इसके अलावा राज्य के लोगों को सरकारी योजनाओं का पूरा फायदा भी मिल रहा है. लेकिन क्या जमीनी हकीकत की तस्वीर भी ऐसी ही है या इससे अलग कहानी कहती है?
‘पिछले साढ़े चार वर्षों में भाजपा सरकार ने सौंदर्यीकरण पर बहुत काम किया है. सड़कों की मरम्मत और फ्लाईओवर का निर्माण भी हुआ है .इससे शहर में लगने वाले घंटों की जाम से लोगों को बहुत राहत मिली है.’ वाराणसी कैंट से करीब 15 किलोमीटर दूर शिवपुर विधानसभा क्षेत्र के आशापुर निवासी 41 वर्षीय अनिल सोनकर इलेक्शनामा को बताते हैं. हालांकि वे आगे हमसे इस बात की शिकायत भी करते हैं कि उत्तर प्रदेश परिवहन के कर्मचारी होने की वजह से उन्हें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अलावे दूसरी सरकारी योजनाओं का फायदा नहीं मिलता.’
वहीं, बनारस से 25 किलोमीटर दूर अजगरा विधानसभा क्षेत्र के चौबेपुर निवासी 54 वर्षीय संजय कुमार भाजपा के चुनाव प्रचार अभियान पर अभी से नजर बनाए हुए हैं. वे कहते हैं, ‘पिछले कुछ महीनों से भाजपा का प्रचार करती हुई एक गाड़ी चौराहे पर लगातार नजर आ रही है. इसमें लगी बड़ी एलईडी स्क्रीन पर योगी और मोदी सरकार की योजनाओं, गंगा सफाई, सड़क, फ्लाईओवर निर्माण और स्मार्ट रेलवे स्टेशनों का जिक्र करते हुए घंटो तक वीडियो चलाए जाते हैं.’ हालांकि उनका मानना है कि वोटरों पर इसका असर नहीं होगा. संजय कहते हैं, ‘बनारस की जनता समझदार है और वोट देने से पहले वह कोरोना की दूसरी लहर में अस्पताल और ऑक्सीजन की कमी को जरूर याद करेगी. जैसे- जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आती जाएंगी, सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा भी दिखने लगेगा.’
वहीं, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की 22 वर्षीय छात्रा सुमन शर्मा योगी सरकार के इस दावे को खारिज करती हैं कि उत्तर प्रदेश में अब महिलाएं पहले से अधिक सुरक्षित हैं. वे इलेक्शनामा को बताती हैं, ‘एक के बाद एक रेप के मामलों ने महिलाओं के भीतर डर पैदा करने का काम किया है. ऐसा लगता हैं कि मानो अपराधियों के मन से कानून का डर खत्म हो चुका हैं.’ इससे आगे वे अपनी मित्र के साथ इव टीजिंग की घटना के बारे में बताती हैं. सुमन की मानें तो सरकार की हेल्पलाइन नंबर पर फोन करने पर भी तत्काल कोई एक्शन नहीं लिया गया था. महिलाओं की सुरक्षा केवल चुनावी मुद्दा है, जो हर पार्टी वोट मांगने के लिए उठाती हैं.’
उधर, उत्तर प्रदेश में महिला सुरक्षा पर आजमगढ़ की 35 वर्षीय रीना मिश्रा भी कुछ ऐसा ही कहती हैं. वे हमें फोन पर कहती हैं, ‘छोटी बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना यह बयां करती हैं कि महिलाओं की सुरक्षा पर सरकार का ध्यान नहीं गया हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग फिर से अपनी बहू-बेटियों को घर में कैद करके रखने लगेंगे.’ रीना आगे निराशा के साथ कहती हैं कि महिला सशक्तिकरण केवल वोट मांगने तक सीमित नहीं रहना चाहिए.