क्यों एक वोटर का मानना है कि लालू यादव का पिछड़ों के मुंह में आवाज देना ही काफी नहीं था

'लालू यादव पिछड़ों के मुंह में आवाज तो दिए थे, लेकिन मेरे लिए इतना ही काफी नहीं था'

आज से करीब 21 साल पहले हुए चुनाव को याद करना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल भरा है. लेकिन कुछ-कुछ यादें और जरूरी बातें हैं, जिनके सहारे मैं ‘मेरा पहला चुनाव‘ कहानी को आगे बढ़ा सकता हूं. साल 2000 का बिहार विधानसभा चुनाव पहला इलेक्शन था, जिसमें मैंने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. उस वक्त मेरी उम्र 19 साल थी और मैं फारबिगंज कॉलेज में स्नातक की पढ़ाई कर रहा था. फारबिसगंज शहर नरपतगंज विधानसभा क्षेत्र स्थित मेरे गांव बरदाहा की दूरी करीब 30 किलोमीटर है. मुझे याद है कि मैं उत्साह में फारबिसगंज से 30 किलोमीटर दूर साइकिल से अपने गांव में वोट देने के लिए गया था.

जब मैं गांव पहुंचा तो देखा कि वहां का सियासी पारा चढ़ा हुआ है. मेरे गांव की अधिकांश आबादी नोनिया जाति की है, जो अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में शामिल है. वहीं पड़ोस के गांवों में दलितों की आबादी अधिक हैं. ये सब दो बार विधायक रह चुके राजद उम्मीदवार दयानंद यादव के पक्ष में एकजुट दिख रहे थे. दूसरी ओर पड़ोस के नाथपुर की कुर्मी आबादी भाजपा उम्मीदवार जनार्दन यादव के साथ थे.

मेरे घर पहुंचते ही बाउ (बाबूजी) ने कहा था, ‘लालटेन छाप में मोहर लगाय दीहे, हमनी गरीब-गुरबा के मुंह में लालू जी ही आवाज देले हन (लालटेन छाप में मुहर लगा देना हम गरीब लोगों के मुँह में लालू जी ही आवाज दिए हैं).’ उनकी इस बात पर मैंने अपना सिर सहमति में हिला दिया. लेकिन मैं सोच रहा था कि लालू यादव पिछड़ों के मुंह में आवाज तो दिए थे. लेकिन मेरे लिए इतना ही काफी नहीं था.

इसके साथ कई बातें मेरे दिमाग में चल रही थीं. एक बार की बात है. किसी काम से हमें तत्कालीन राजद विधायक दयानंद यादव के घर जाना पड़ा था. उनका घर नरपतगंज के ही रामघाट गांव में है. वहां मैंने देखा कि उनके घर तक बिजली और सड़क पहुंच चुकी थी. लेकिन आस-पास के गांवों में इन सुविधाओं का अभाव था।  हमारे लिए अभी भी यह किसी सपने जैसा ही था. इसने उस वक्त मेरे अंदर कई तरह के सवाल पैदा किए थे. खैर, हमारा यह सपना नीतीश सरकार (2008) में सच हुआ था.

किसको वोट देना है…..किसकों नहीं देना है, इस पर वोट देने से पहले मेरे मन में काफी कुछ और चल रहा था. हमारे स्थानीय विधायक राजद सरकार में मंत्री भी रह चुके थे, लेकिन उन्होंने अपने क्षेत्र में विकास का कोई काम नही किया था. इसके अलावा मेरे लिए लालू यादव-राबड़ी देवी की सरकार में अपराध के बढ़ते मामले एक बड़ा मुद्दा था. इन बातों को दिमाग में रखकर ही मैंने राज्य में बदलाव के लिए भाजपा को वोट दिया था. भाजपा उम्मीदवार जनार्दन यादव को राजद प्रत्याशी के मुकाबले अधिक शिक्षित थे. इस बात ने भी मुझे प्रभावित किया था. मेरे लिए ये संतोष करने की बात रही कि बिहार में भले ही एक बार फिर से राजद सरकार बनाने में कामयाब हुई, लेकिन नरपतगंज में जनार्दन यादव की जीत से मेरा वोट बेकार नहीं हुआ.

ललन कुमार सिंह पटना स्थित महालेखाकार कार्यालय में सीनियर ऑडिटर के पद पर हैं

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