अबकी बार भी हिमाचल प्रदेश की जनता ने ‘राज’ खत्म किया है और रिवाज को कायम रखा है. देवभूमि कहे जाने वाले इस राज्य की जनता ने एक बार फिर कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराई है. राज्य की कुल 68 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के खाते में 40 सीटें आई हैं. वहीं, भाजपा को 25 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है. हालांकि, वोट की हिस्सेदारी में दोनों पार्टियों के बीच करीब एक फीसदी का ही अंतर है. कांग्रेस पर राज्य के 43.9 फीसदी मतदाताओं ने विश्वास जताया है तो भाजपा के लिए यह आंकड़ा 43 फीसदी है.
इस चुनावी परिणाम के बाद अब छत्तीसगढ़ और राजस्थान के बाद हिमाचल प्रदेश देश में तीसरा राज्य होगा, जहां कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में होगी. यह लगातार कमजोर पड़ती जा रही देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए राहत वाली बात होगी. इसके अलावा यह कांग्रेस के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव- 2022 में मिली बड़ी हार पर मरहम का काम करती दिख रही है.
लेकिन यहां सवाल उठता है कि नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के चुनावी अभियान के बावजूद भाजपा की सत्ता में वापसी की उम्मीद धूमिल कैसे हो गई? हिमाचल प्रदेश भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर का गृह राज्य भी है. क्या इसके पीछे केवल राज्य की जनता के बीच पांच साल में सरकार बदलने का रिवाज भी है या अन्य कारण भी?
हमने बीते 12 नवंबर को मतदान से पहले जमीनी स्थितियों का जायजा लिया था. मतदाताओं से बातचीत के दौरान हमने राज्य की जनता के बीच मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के खिलाफ लोगों की नाराजगी दिखी थी. इसके अलावा कई अन्य मुद्दे भी थे. इनमें पुरानी पेंशन योजना, महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सहित अन्य बुनियादी मुद्दे थे. इसके अलावा सियासी नजरों से देखें तो अनुराग सिंह ठाकुर को साइडलाइन करने से उनके समर्थको में एक भीतरी नाराजगी थी. इसका नतीजा चुनावी परिणाम में भी दिखा. अनुराग के क्षेत्र हमीरपुर की पांच विधानसभा सीटों में से भाजपा को केवल एक पर जीत का स्वाद चख पाई है. इसके अलावा राज्य की कई सीटों पर बागी उम्मीदवारों ने भी भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. लेकिन हम अभी पार्टियों की अंदरूनी सियासत पर न जाकर बुनियादी मुद्दों की बात करते हैं.
महंगाई और सरकार से नाराजगी
राज्य के मतदाताओं, विशेषकर महिलाओं ने महंगाई को लेकर अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की. शिमला (ग्रामीण) विधानसभा क्षेत्र की महिला मतदाता सुभद्रा शर्मा का कहना था, ‘हमें 1200 रुपये का गैस सिलिंडर पड़ रहा है. पहले से काफी अधिक खर्च बढ़ गया. उतनी आमदनी नहीं है, जितना खर्च है.’ इसके अलावा उन्होंने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को लेकर भी अपनी नाराजगी जाहिर कीं. उनका कहना था, ‘जयराम ठाकुर ने कोई काम नहीं किया है. हम इस बार कांग्रेस को लाना चाहते हैं. भाजपा ने कहा था कि अच्छे दिन आने वाले हैं, लेकिन अच्छे दिन तो अभी तक नहीं आएं.’
वहीं, शिमला शहर स्थित एक होटल कारोबारी ने अपना नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर हमें बताया, ‘महंगाई ने हमारा मुनाफा कम कर दिया है. अगर हम खाने की कीमत बढ़ाते हैं तो ग्राहकों की संख्या कम हो सकती है. हमारी भी मजबूरी है और ग्राहकों की भी.’
रोजगार और पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस)
राज्य में औद्योगिकीकरण न होने के चलते अधिकांश लोग अपनी आजीविका को लेकर सरकार की देखती है. लेकिन अधिकांश मतदाताओं की मानें तो साल 2004 के आस-पास से ही लोगों को सरकारी नौकरियां मिलनी कम हो गई हैं.
शिमला के बाहरी क्षेत्र के 69 वर्षीय सूरत राम मोदी सरकार के कामों से तो खुश तो दिखते हैं, लेकिन बेरोजगारी के मुद्दे पर वे भी अपनी नाराजगी छिपा नहीं पाते हैं. उन्होंने हमसे कहा, ‘अभी नौकरियां ही नहीं है. अभी मल्टीटास्कर रख रहे हैं और उन्हें कितना दे रहे हैं…5000 रुपए. आउटसोर्स में 10000 रुपए दे रहे हैं. उसमें क्या होगा? इससे अच्छा है कि लोग दिहाड़ी कर लें.’ जब हमने राज्य के युवाओं से बात की तो रोजगार के मुद्दे पर सरकार से उनकी नाराजगी साफ दिखी थी. बताया जाता है कि करीब 75 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में करीब 10 लाख युवाओं को नौकरी की तलाश है और उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है.
सुभद्रा शर्मा का कहना था, ‘हर घर से एक आदमी को सरकारी नौकरी होनी चाहिए. हमारे आस-पास बहुत सारे लोग बेरोजगार है. किसी के पास कोई काम नहीं है. हम तो सरकार से यही चाहती हैं कि लोगों के पास हर घर से एक रोजगार हो. श्रम कार्ड का भी कोई फायदा नहीं है.’ शिमला के मॉल रोड पर हमें एक युवा ने बताया था कि राज्य में न तो बाहर से कोई कंपनी आती है और न ही सरकार यहां रोजगार के कोई साधन उपलब्ध करवाती है, इसकी वजह से हमें पढ़ाई के साथ-साथ रोजगार के लिए राज्य से बाहर जाना होता है.
माना जाता है कि इन बातों को देखते हुए ही कांग्रेस ने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत से ही बेरोजगारी के मुद्दे को केंद्र में रखा. वहीं, चुनावी परिणाम को देखते हुए माना जा सकता है कि मतदाताओं के एक हिस्से ने कांग्रेस की पुरानी पेंशन योजना और महिलाओं को 1500 रुपये महीने देने का वादे पर भी भरोसा दिखाया है. हालांकि, हमारी बातचीत में कइयों का कहना था कि यह केवल वादे हैं, राज्य की वित्तीय स्थिति को देखते हुए इनके पूरे होने पर उन्हें विश्वास नहीं है. 40 वर्षीय मधु ने हमसे कहा था, ‘कांग्रेस कहती है कि अगर वह सत्ता में आएगी तो तो 1500 रुपये हर महीने देंगी. अब आप देख लो कि कितने लोग हैं, कब तक पैसे डालेंगे ये? कंगाल हो जाएगी, सरकार.’
इनके अलावा राज्य में पानी की कमी, स्वास्थ्य, शिक्षा और सड़क जैसे बुनियादी मुद्दे पर मतदाताओं की नाराजगी खुलकर दिखती है. लेकिन वे आने वाली सरकारों से भी नाउम्मीद दिखते हैं. जब हमने मधु से पूछा कि कांग्रेस जो वादे कर रही हैं, उन पर भरोसा करती हैं. इस पर उनका कहना था, ‘कोई भी सरकार आए, कमाकर तो खुद ही खाना है, हमने. कोई कुछ नहीं देती नहीं है. सरकार से कोई उम्मीद नहीं है. अगर कांग्रेस सरकार बनाती है और बाद में अपनी बातों से मुकर जाती है तो किसको पकड़ेंगी हम?’