आदित्यनाथ ने जब कहा था – ‘जातियां चीजों को व्यवस्थित और संगठित रखती हैं’

पुस्तक अंश : ‘डेमोक्रेसी ऑन द रोड’ I लेखक - रूचिर शर्मा

उत्तर प्रदेश चुनाव (2017) में अखिलेश यादव से नाराजगी का लाभ नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों सहित विवादास्पद योगी आदित्यनाथ को भी मिल रहा था. हम आदित्यनाथ के चुनावी रोडशो में गए और उन्हें रैलियों में सुना, जहां वे कतई संयत प्रतीत नहीं होते थे. आदित्यनाथ चेतावनी देते कि अगर भाजपा सत्ता में नहीं आई तो उत्तर प्रदेश सरकार कब्रिस्तानों में और पैसा झोंक देगी. स्टार्ट-अप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं का पैसा मुसलमानों को बांट दिया जाएगा. अगर भाजपा जीतती है तो वह हर धर्म के हित में काम करेगी और उत्तर प्रदेश को ‘कश्मीर’ बनने नहीं देगी.

हम आदित्यनाथ से गोरखनाथ मठ में उनके कार्यालय में मिले. जैसे ही हमने प्रवेश किया तो उनके साथियों को कहते सुना कि अगर अंग्रेजी बोलने वाले पत्रकार इंटरव्यू लेने के लिए आए हैं तो इसका मतलब है कि उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना बढ़ रही है. हालांकि उस समय भारत में कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि भड़काऊ बयानों को देखते हुए आदित्यनाथ को गोरखपुर से बाहर भी कोई सत्ता सौंपी जा सकती है.

योगी आदित्यनाथ ने हमसे ऐसी कठिन हिंदी में बात की, मानो वह सीधी संस्कृत से निकली हो- एक भी शब्द अरबी, फारसी या अंग्रेजी का नहीं था, जो आम बोलचाल की हिंदी में सदियों से रचे बसे हैं. आदित्यनाथ ने जाति को लेकर चौंकाने वाली बात की. उन्होंने कहा, ‘जातियां समाज में वैसे ही काम करती है, जैसी खेतों में हल की रेखाएं करती हैं. वे चीजों को व्यवस्थित और संगठित रखती हैं. जाति तो ठीक है, लेकिन जातिवाद गलत है. हम राजनीति के लिए जातिवाद के विरोध में हैं.’

उनकी इन बातों से हमें लगा कि वे जाति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्राचीन जाति प्रणाली के पक्षधर तो हैं, लेकिन चाहते हैं कि भारत को राजनीति में इसे आधुनिक रूप में लागू करना चाहिए, चुनाव प्रचार अभियानों को जाति संघर्ष और गुट बनाने का खेल नहीं बनाना चाहिए.

अब तक (चुनाव कवरेज) हमें स्थानीय अधिकारियों से निजी सुविधाएं पूछ लेने की आदत पड़ चुकी थी, क्योंकि हर भारतीय इस चुनौती से भलीभांति परिचित होता है. लेकिन गोरखनाथ मठ में जब मैंने किसी से पूछा तो किंचित असमंजस में पड़ गया. योगी आदित्यनाथ से बातचीत खत्म करने के बाद उनके स्टाफ ने मुझे टॉयलेट के लिए पीछे एक विशाल लेकिन खाली कार्यालय की ओर भेज दिया. लेकिन जब मैं वापिस लौटा तो देखा वह खाली नहीं था. मैं आदित्यनाथ के निजी कक्ष में था और वहां वे खुद फर्श पर एक सुंदर कढ़ाई वाली गद्दी पर अकेल बैठे कागजों पर हस्ताक्षर कर रहे थे. हम एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराए और मैं तेजी से बाहर निकल गया.

इस स्टोरी पर अपनी प्रतिक्रिया हमें electionnama@gmail.com पर या इस लिंक पर भेजें

इलेक्शननामा के साथ आप Facebook और Twitter के जरिए भी जुड़ सकते हैं

हम क्या करते है - आप क्या कर सकते हैं

संबंधित खबरें

लोकप्रिय