एक वोट से नतीजा तय होने के बाद जो हुआ, वह दिखाता है कि पंचायतों में लोकतंत्र परिपक्व नहीं हुआ है

चुनाव प्रक्रिया के बारे मे नासमझी की वजह से ही आठ महीने की एक गर्भवती मतदाता किसी की प्रिय हो गईं तो दूसरे ने अपने मन उनके लिए खटास पैदा कर लिया

आम तौर पर अपने पहले चुनाव में अपना वोट देना एक अलग अनुभव होता है. लेकिन मेरे लिए कुछ ऐसा होने के बाद भी अलग अनुभव था. आठ महीने की गर्भवती होने के चलते इस अनुभव को पाने के लिए मेरी कई मुश्किलों से गुजरना था. लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि इससे किसी उम्मीदवार के भाग्य का फैसला तय हो सकता है और मेरे लिए अजीब सी स्थिति पैदा हो सकती है.

 

मैंने पहली बार 20 अक्टूबर, 2021 को बिहार ग्राम पंचायत चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. इससे पहले मुझे कभी वोट देने के मौका नहीं मिला था. भारत में लड़कियों के मतदाता बनने और कानूनी तौर पर शादी के योग्य होने की उम्र एक ही है. वोटर कार्ड बनने के कुछ महीने के बाद ही मेरी शादी भी हो गई थी और अपने पति के साथ ही मेरा जीवन शुरू हो गया. इस दौरान मेरा घर तो बदल गया, लेकिन मेरे मतदाता पहचान पत्र का पता नहीं. मेरा पता था, गांव- फजिल्लापुर, ग्राम पंचायत- रानीपुर, प्रखंड- इस्लामपुर और जिला नालंदा.

हालांकि, इस बार के पंचायत चुनाव में मुझे अपने मताधिकार के इस्तेमाल करने का मौका मिला. लेकिन इसके साथ कुछ मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा. आठ महीने की गर्भवती होने के लिए 500 मीटर दूर पोलिंग बूथ पर जाना और वहां मतदान की प्रक्रिया से गुजरना मेरे लिए आसान नहीं था. मैं इसके लिए तैयार भी नहीं थी. लेकिन पापा मुझसे बार-बार कह रहे थे कि वोट देने के लिए जाना चाहिए. एक-एक वोट से हार-जीत का फैसला होता है. आखिरकार मैं भी जाने के लिए तैयारी हो गई. मेरे साथ मां थीं. उन्होंने मुझे सीढ़ी पर चढ़ने और उतरने में मदद की. मेरा वोट उस बूथ पर सबसे आखिर वोट था. लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि ये इतना महत्वपूर्ण साबित होगा.

इस चुनाव के जब नतीजे आए तो वार्ड सदस्य चुनाव परिणाम के केंद्र में मेरा वोट ही था. वार्ड सदस्य के लिए हुए चुनाव के नतीजे में मीना देवी ने सत्येंद्र प्रसाद पर एक वोट से जीत दर्ज की. इससे दोनों उम्मीदवार सहित अन्य लोगों का यह मानना हुआ कि मेरे एक वोट से ही मीना देवी की जीत हुई है. दूसरी ओर, सत्येंद्र प्रसाद की हार की वजह भी मुझे ही माना गया है. हर जगह हल्ला था कि मेरी वजह से वे हारे हैं. रिजल्ट से पहले उनका मेरे घर आना जाना था. लेकिन हार के बाद उन्होंने ये सिलसिला बंद कर दिया.

वोट देने से पहले मुझे नहीं पता था कि मेरा वोट किसी उम्मीदवार के लिए निर्णायक साबित होगा. लेकिन यहां मैं यह साफ करती हूं कि नतीजे भले ही एक वोट से तय हुआ, लेकिन मेरे ही वोट से किसी उम्मीदवार की जीत हुई या हार, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है. ईवीएम में सभी उम्मीदवारों के कुल वोट ही दर्ज किए जाते हैं. ये रिकॉर्ड नहीं किया जाता है कि आखिर में किसने किस उम्मीदवार को वोट दिया. अब मान लीजिए मेरे वोट देने से पहले मीना देवी अपने प्रतिद्वंदी सत्येंद्र प्रसाद से दो वोट से आगे चल रही थी. अब मैंने जब सत्येंद्र प्रसाद को वोट दिया तो यह अंतर घटकर एक वोट का हो गया. चुनाव की इस प्रक्रिया को लेकर नासमझी की वजह से ही मैं एक उम्मीदवार की प्रिय हो गई और दूसरे ने अपने मन में मेरे लिए खटास पैदा कर लिया. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. ये चीजें दिखाती हैं कि स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र अभी भी परिपक्व नहीं हो पाया है.

(*अगर आप भी अपने पहले चुनाव का अनुभव साझा करना चाहते हैं तो हमें लिखें. हम सभी के लिए इस अनुभव को लिखना इसलिए भी जरूरी है कि आने वाली पीढ़ी तक ये बात पहुंच सके कि भारतीय लोकतंत्र के विकास में उनसे पहले की पीढ़ियों का कितना और कैसा योगदान रहा है. इसके लिए हमारा पता है : electionnama@gmail.com)

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