योगी आदित्यनाथ से पहले उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक पूर्वांचल से कोई मुख्यमंत्री नहीं रहा था. साल 2017 में भारी बहुमत हासिल करने के बाद जब भाजपा ने उनको मुख्यमंत्री बनाया तो 10 करोड़ से अधिक आबादी वाले पूर्वांचल में एक खास तरह के उत्साह का संचार हुआ था. आदित्यनाथ से पहले सम्पूर्णानंद, त्रिभुवन नारायण सिंह, कमलापति त्रिपाठी, राम नरेश यादव, वीर बहादुर सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, राजनाथ सिंह पूर्वांचल से मुख्यमंत्री रहे थे. आदित्यनाथ जब गोरखपुर से लखनऊ पहुंचे तो उनके सामने पूर्वांचल के विकास के सूखे को खत्म करने की बड़ी चुनौती थी. कई मुद्दों पर काम करने के बाद भी साढ़े चार साल बाद कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर बड़े स्तर पर काम किया जाना बाकी है.
हमें यह कहने में किसी तरह का संकोच नहीं होना चाहिए कि पूर्वांचल की पहचान बेरोजगारी और बीमारी बन चुकी थी. योगी सरकार आने के बाद इस पर पूरा काम तो नहीं हुआ है, लेकिन कह सकते हैं कि एक शुरुआत जरूर हुई है. बस्ती मंडल में मुंडेरवा चीनी मिल का लंबित उद्घाटन और कायाकल्प हो या गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) में बढ़ी चहल-पहल और औद्योगिक गलियारे की शुरुआत पूर्वांचल के विकास में शुभ संकेत की तरह हैं. इसके चलते क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या का समाधान तो नहीं हुआ है, लेकिन दिल्ली और मुंबई जाने वाले मजदूरों की संख्या पहले के मुकाबले कम जरूर हुई है.
वहीं, दिमागी बुखार, इंसेफेलाइटिस सरीखी बीमारियों से हर साल कई माओं की गोद सूनी होती थी. सरकार ने इस पर काम भी किया है. बीते कुछ वर्षों में कई मेडिकल कॉलेज खुले हैं. लेकिन इनमें बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव दिखता है. बस्ती की ही बात करें तो यहां न्यूरो, हार्ट और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के मरीजों की बड़ी संख्या है. लेकिन इनके इलाज के लिए कोई दुरूस्त व्यवस्था नहीं है.
स्वास्थ्य के बाद अगर हम शिक्षा की बात करें तो इस क्षेत्र में काफी कुछ किया जाना बाकी है. बीते डेढ़ साल के दौरान कोरोना महामारी की वजह से सबसे अधिक बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को नुकसान पहुंचा है. इस नुकसान को कम करने के लिए ऑनलाइन क्लास को एक जरिया तो बनाया गया है, लेकिन लेकिन एक बड़ी संख्या में छात्र बुनियादी जरूरतों के अभाव में अभी भी इससे वंचित हैं.
वहीं, उच्च शिक्षा के मोर्चे पर भी सरकार को और अधिक काम करने की जरूरत है. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने इस दिशा में सुधार के कुछ कदम उठाए हैं. इनमें प्राचार्यों और डिग्री कॉलेजों में प्रवक्ताओं की नियुक्ति हुई है. लेकिन केवल केवल इतने से स्थिति में बड़ा बदलाव नहीं होगा. पूर्वांचल में जौनपुर, गोरखपुर और सिद्धार्थनगर में विश्वविद्यालय हैं. इनसे कई डिग्री कॉलेज जुड़े हुए हैं. लेकिन विश्वविद्यालय मुख्यालय से दूर के छात्रों को किसी भी प्रशासनिक काम के लिए अपना पूरा दिन खर्च करना पड़ता है. कई बार तो वे किसी न किसी ठगी का भी शिकार भी हो जाते हैं. छात्रों की इस परेशानी को देखते हुए सरकार को चाहिए कि विश्वविद्यालय मुख्यालय से 70 से अधिक किलोमीटर दूर वाले डिग्री कॉलेजों में एक प्रशासनिक भवन स्थापित कर दिया जाए.
अभी भी पूर्वांचल के लिए बाढ़ एक बड़ी समस्या बनी हुई है. दो दिन की लगातार बारिश में हमारा शहर पानी-पानी हो जाता है और गांवों के लिए बाढ़ तो जीवन-मरण का सवाल होता है. बाढ़ के बाद की विभिषिका से खुद मुख्यमंत्री भी वाकिफ हैं, ऐसे में केवल प्रशासनिक अमले के भरोसे बाढ़ की भयावहता को कम नहीं कर सकते. मानसून से कुछ समय पहले हमारे बंधे बनने शुरू होते हैं और बारिश और बाढ़ के बाद प्रशासनिक अमला उन्हें भूल जाता है. इस दिशा में भी अभी बड़े स्तर पर काम करना है.
सड़कों की बात करें तो सरकार एक्सप्रेस-वे बनाकर यह प्रचार तो जरूर कर रही है कि सड़कों के गड्ढ़े कम हो रहे हैं, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में सड़कों की स्थिति बद से बदतर है. हमारे यहां बस्ती में कुछ सड़कें ऐसी हैं, जिन्हें कई पीढ़ियों ने अबतक गड्ढ़ों में ही देखा है.
पूर्वांचल के 32 जिलों में 162 विधानसभाओं की जनता को अभी भी सरकार और इसके मुखिया से कईं उम्मीदें हैं. ऐसा पहली बार हुआ है कि देश के प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) और राज्य के मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ) पूर्वांचल से दिल्ली और लखनऊ पहुंचे हैं. ऐसा होने पर भी अगर पूर्वांचल विकास के अहम मानकों पर खरा न उतर पाए तो फिर मतदाता क्या करें!
पूर्वांचल में योगी ने विकास के पहिए को कितनी रफ्तार दी और जनता इसे कितना स्वीकार करती है, यह तो आगामी विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बता पाएंगे. लेकिन इतना जरूर है कि लोगों में उम्मीद की एक किरण अब भी बाकी है कि आगे कुछ अच्छा होगा.
उत्तर प्रदेश के एक मतदाता का मत, उनके आग्रह पर हम उनका नाम सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं