बहुत से सदस्यों ने अनुच्छेद 370 पर अपने विचार व्यक्त किए हैं. उन्होंने इस अनुच्छेद की आलोचना की है या उस पर स्पष्टीकरण दिया या उसका समर्थन किया है. जैसा कि कहा जा चुका है, हमारे संविधान में यह जम्मू और कश्मीर के लिए किया गया विशेष प्रावधान है, जिसके पीछे राज्य में प्रचलित कई ऐतिहासिक और राजनैतिक तथ्य हैं. इसमें यह व्यवस्था है कि किसी ढंग से वहां की सरकार की सहमति के साथ संविधान के अन्य अनुच्छेद वहां लागू की जाएं. यह सिलसिला अब तक कई वर्षों से संतोषजनक रूप से चलता रहा है और इस प्रकार कई महत्वपूर्ण और जरूरी प्रावधानों को लागू किया जा चुका है. यह मानने का कोई कारण नहीं है कि और व्यवस्थाएं लागू नहीं की जाएंगी. अगर आपसी विश्वास बना रहे तो राज्य और केंद्र एक-दूसरे की जरूरतों को अवश्य ही समझेंगे.
श्री बाजपेयी (अटल बिहारी) ने मेरे एक कथन में आए एक वाक्य को बहुत उछाला है. विपक्ष की यह खासियत बन गई है कि वह कहीं से कोई एक शब्द खोजने की कोशिश करता है, जिससे वह उसके हवाले से हमें गलत साबित कर दे. वह किसी कथन की भावना या सारांश की ओर नहीं देखना चाहता. अनुच्छेद- 370 के बारे में जो मैंने कहा था, और जिस पर श्री एसएन मिश्र ने आपत्ति की थी, वह उच्चतम न्यायालय के 1970 के फैसले पर आधारित था.
मैंने कहा था कि राज्य की संविधान सभा ने, जिसने अपना काम 1956 में पूरा कर लिया था, अनुच्छेद 370 को हटा देने या उसमें संशोधन करने के लिए नहीं कहा था, इसलिए वह हमारे संविधान का हिस्सा बन गया. इस स्थिति की पुष्टि 1970 में उच्चतम न्यायालय ने की थी.
यही बात मैं पहले कह चुकी हूं. मैंने इस अनुच्छेद के बारे में जो कहा उससे साफ है कि घुटने टेक देने का कोई सवाल नहीं उठता. न उन बंधनों में कोई ढील आई है, जो केंद्र और जम्मू-कश्मीर के बीच मौजूद है. यह इस बात से साफ हो जाती है कि अनुच्छेद 370 को शामिल किए जाने के बाद के वर्षों में ऐसे कोई परिणाम सामने नहीं आए हैं. यह आरोप सही नहीं है कि इससे अन्य राज्यों को एक नजीर मिल जाएगी. जम्मू और कश्मीर के बारे में एक विशिष्ट संवैधानिक बात यह है कि उसका अपना भी संविधान है, जो संघीय संविधान और अनुच्छेद 370 का पूरक है.
हम सब राज्य के दो क्षेत्रों- जम्मू और लद्दाख के विकास के लिए बहुत चिंतित हैं. डॉ. कर्ण सिंह ने बताया है कि जम्मू में क्या विकास कार्य चल रहा है. कुशक बाकुला (लोकसभा सदस्य) ने यह महसूस किया है कि लद्दाख के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है. लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं है. विकास तो वहां हुआ है, लेकिन वह कतई पर्याप्त नहीं है. मैंने इन क्षेत्रों में लगातार रूचि ली है, चाहे वे कितने ही दूरदराज के क्षेत्र क्यों न हो. शेख अब्दुल्ला के साथ बातचीत के दौरान मैंने विशेष रूप से इन क्षेत्रों की कठिनाइयों और चिंता के बारे में चर्चा की और कश्मीर घाटी के कुछ लोगों के बारे में भी कहा.
जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति न केवल इस कारण है कि वहां का अपना संविधान है और मुस्लिम बहुल राज्य है, बल्कि जैसा कि डॉ. कर्ण सिंह ने ठीक ही कहा, इसलिए भी है कि हमारे खिलाफ होने वाले कई हमलों में वह मुख्य युद्ध भूमि रहा है. राज्य के तीन अंचलों के लोगों ने राष्ट्रीय उद्देश्यों की खातिर बहादुरी से लोहा लिया है. मैं विशेष रूप से वीर गुज्जरों, बकरवालों और गद्दियों का उल्लेख करना चाहती हूं. ये ऐसे समुदाय है, जिन्हें बहुत गरीबी और मुसीबतें झेलनी पड़ी हैं. हमें उन्हें शिक्षा और रोजगार आदि के रूप में जितनी भी सहायता दे सके, देनी चाहिए. मुझे उम्मीद है कि उनकी समस्याओं की ओर पर्याप्त ध्यान दिया जाएगा.
हमें किसी चमत्कार की या सभी तनाव पूरी तरह से दूर होने जाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए. हम चाहे जितनी इच्छा करें कि ऐसा न हो, फिर भी जीवन हमेशा ही समस्याओं की कड़ी से जुड़ा रहता है. हम जब एक समस्या का समाधान खोज लेते हैं तो दूसरी तरह की कठिनाइयां पैदा हो जाती हैं. लेकिन समझदारी और विश्वास पर आधारित उपलब्धि से चुनौतियों का सामना करने की हमारी क्षमता बढ़ जाती है.
चार मार्च, 1975 को अनुच्छेद-370 पर लोकसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भाषण का एक अंश