गहने लादकर महिलाओं के बाहर जाने की बात पहले भी की गई है, लेकिन वह भाजपा शासन के बारे में नहीं था

गृह मंत्री अमित शाह ने दावा किया है कि 16 साल की बच्ची गहने लादकर स्कूटी पर रात के 12 बजे भी उत्तर प्रदेश की सड़कों पर निकल सकती है

बीते शुक्रवार को देश के गृह मंत्री अमित शाह ने लखनऊ में भाजपा के एक कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ की सरकार में उत्तर प्रदेश में महिला सुरक्षा पर बड़ी टिप्पणी की है. उन्होंने कहा, ‘(पिछली सरकारों में) बच्चियां घर से बाहर नहीं निकलती थीं. आज कोई भी त्यौहार हो, छठ का हो दिपावली का हो, 16 साल की बच्ची गहने लादकर स्कूटी पर रात के 12 बजे भी यूपी की सड़कों पर निकल सकती है. कोई डर नहीं है.’

इसके बाद सोशल मीडिया पर गृह मंत्री के इस दावे को लेकर कई तरह की आपत्तियां दर्ज की गई. इससे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी दावा किया था कि राज्य में महिलाएं पहले से अधिक सुरक्षित हैं. किसी राज्य में महिला सुरक्षा को लेकर इस तरह का यह पहला बयान नहीं है. इससे पहले दिल्ली की केजरीवाल सरकार में मंत्री सोमनाथ भारती ने भी राज्य में महिला सुरक्षा को लेकर इसी तरह के दावे किए थे.

आम तौर पर यह देखा जा रहा है कि समय-समय पर केंद्र या राज्य सरकार के मंत्री महिला सुरक्षा को लेकर इस तरह के दावें करते हैं. क्या इनका कोई ऐतिहासिक स्रोत भी है? क्या ऐसे दावे केवल यह साबित करने के लिए किए जाते हैैं कि राज्य विशेष के मुख्यमंत्री भारतीय इतिहास के सबसे अच्छे शासक हैं और उनका शासन पहले के शासकों से बेहतर है. जैसा कि अमित शाह ने भी अपने भाषण में इसका जिक्र किया है.

अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा को लेकर इस तरह का जिक्र पहली बार अफगान शासक शेरशाह सूरी के बारे में मिलता है. शेरशाह का वास्तविक नाम फरीद खां था. इतिहासकारों की मानें तो जब फरीद दक्षिण बिहार के सुबेदार बहार खां लोदी की सेवा में थे, उस दौरान उन्होंने शिकार खेलते समय एक शेर को मार गिराया था. इससे प्रभावित होकर बहार खान ने उसे शेर खां की उपाधि दी थी.

भारतीय इतिहास में मुगल शासनकाल (1526 से 1857) के दौरान एक बार ब्रेक लगाने का काम शेरशाह सूरी ने किया था. उन्होंने साल 1540 में कन्नौज की लड़ाई में मुगल शासक हुमायूं को हराने के बाद भारत में दूसरे अफगान साम्राज्य की नींव रखी थी. इससे पहले 1451 में बहलोल लोदी ने दिल्ली पर लोदी वंश के नाम से पहले अफगान साम्राज्य की स्थापना की थी, जिसका शासन 1526 में बाबर के हाथों इब्राहिम लोदी की हार के साथ खत्म हो गया था.

साल 1540 में दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद शेरशाह सूरी ने अपनी मृत्यु (कालिंजर के युद्ध के बाद 1545 में निधन) तक दिल्ली पर शासन किया. इन पांच वर्षों के दौरान ही उन्होंने कई ऐसे काम किए, जिसकी वजह से उनकी गिनती सबसे बेहतरीन शासकों में की जाती है.

शेरशाह के बारे में इतिहासकार कीन ने लिखा है, ‘इस पठान ने पांच वर्षों में इतना कुछ कर डाला, जितना कि मुगल या अंग्रेज भी नहीं कर पाए.’ वहीं, एक दूसरे इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ का मानना है कि अगर शेरशाह को और अधिक समय मिला होता, तो हो सकता है कि उसने अपना ही स्थापित कर दिया होता और तब भारतीय इतिहास के रंगमंच पर महान मुगलों को उभरने का मौका ही नहीं मिला होता.

शेरशाह सूरी के प्रशासन के बारे में हमें जानकारी अब्बास खां शेरवानी की लिखित जीवनी ‘तारीख-ए शेरशाही’ से मिलती है. हालांकि, आधुनिक इतिहासकार केआर कानूनगो ने अपनी किताब ‘शेरशाह और उनका काल’ में सूरी को किसी नई प्रशासनिक व्यवस्था का जनक नहीं माना है, लेकिन पुरानी व्यवस्था को नए सिरे से लागू करने का श्रेय दिया है.

शेरशाह को सूरी को कई चीजों के लिए आज भी याद किया जाता है. इनमें कलकत्ता से लाहौर तक ग्रांट ट्रंक रोड और इसके किनारे सरायों का निर्माण और भू-राजस्व प्रणाली शामिल हैं. इसके अलावा शेरशाह सूरी के शासन में कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा का भी जिक्र मिलता है.

इतिहासकार अब्बास खां शेरवानी लिखते हैं, ‘एक मृत्यु के मुख में पहुंचने वाली (कमजोर और अत्यधिक उम्र की) वृद्ध महिला अपने सिर पर सोने के आभूषणों से भरा टोकरा रखे यात्रा पर निकल पड़ती है. उस वक्त भी किसी चोर या लुटेरे की हिम्मत नहीं हुई कि वह उस वृद्ध महिला के पास फटक (गलत नियत से) सके, क्योंकि उन्हें मालूम है कि इसके लिए शेरशाह कितना बड़ा दण्ड दे सकता है.’ हालांकि, कई इतिहासकार इसे खारिज करते हुए मानते हैं कि शेरवानी ने इसे बढ़ा-चढ़ाकर लिखा है.

लेकिन इतिहासकारों के बीच अफगान साम्राज्य में महिलाओं की स्थिति बेहतर होने को लेकर कोई मतभेद नहीं है. अफगानी समाज में महिलाओं को महत्वपूर्ण दर्जा हासिल था. पति के निधन के बाद उसकी संपत्ति पर पुत्रों की जगह उन्हीं का नियंत्रण होता था.

वहीं, इतिहासकर इस पर भी एक मत दिखते हैं कि शेरशाह सूरी अपने साम्राज्य में न्याय को मजबूती से लागू करवाता था. केआर कानूनगो लिखते हैं, ‘साढ़े पांच साल के छोटे से शासनकाल में शायद एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता, जब शेरशाह अपने इस सिद्धांत से तिलभर भी डिगा हो.’ वहीं, शेरशाह की न्यायप्रियता को लेकर अब्बास खां शेरवानी ने कहा है, ‘वह हमेशा मामले की सच्चाई की जांच-पड़ताल कर लेता था, उसने कभी उत्पीड़कों या अत्याचारियों का पक्ष नहीं लिया. उसने दोषी को सजा देने के मामले में न तो देरी की और न ही नरमदिली दिखाई.

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में दूरबीन से भी देखने पर दूर तक एक भी बाहुबली के न दिखने का दावा तो अमित शाह करते हैं, लेकिन मंच पर ही खुद के पीछे गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को भी नहीं देख पाते हैं. अजय मिश्र के बेटे पर लखीमपुर में किसानों को कुचलने के आरोप हैं.

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