लालू यादव लुंगी और सैंडो बनियान में थे और निश्चित ही काफी प्रसन्न और आत्मीय लग रहे थे. हमसे लालू बड़े तपाक से मिले और क्यारियों के बीच बैठने की जगह ले गए. वहां प्लास्टिक कुर्सियों के बीच एक मेज रख दी गई थी. बैठने के बाद मैंने नोटिस किया कि लालू की भुजाओं का मांस ढीला होकर लटकने लगा है और पेट आगे आ गया है. कोई चुपके से आकर उन्हें तम्बाकू की चुटकी दे गया, जिससे उनने मुंह के कोने में दबा लिया. उनकी कुर्सी के बगल में एक पीकदान रखा था.
लालू काफी संतोष से इस देश की जनता की न्यायप्रियता का बखान करते रहे. उनकी बातों से लगा कि उनके बीच सीबीआई ने जो किया है और उन्हें जो जेल (बेउर जेल) में भेजा गया है, उससे जनता नाराज है.
लालू यादव बताते हैं, ‘किंग महेंद्र हमसे मिलने आए थे, जिनको हमने राज्य सभा का टिकट दिया है. उनका ग्रैंड सन बंबई के बड़े स्कूल में पढ़ता है. वे कह रहे थे कि उनका ग्रैंड सन और उसके साथ के बड़े एलीट घरों के बच्चे कहते हैं कि लालू जी के साथ टू मच हुआ है. ये नहीं होना चाहिए. तो जब इस देश के एलीट के घरों में भी लगने लगा है कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है तो भई ये एलीट तो हमरे खिलाफ हैं. जब उसी को लग रहा है कि हमारे साथ ज्यादती हो रही है तो गरीब-गुरबा तो पहले से ही मानता है न! लालू बहुत मजा ले-ले कर बताते रहे कि उनके साथ क्या-क्या हुआ है और वे किस तरह उनको फिनिश किए जाने का बेटल लड़ रहे हैं.’
वे परेशान कतई नहीं थे और मुझे लग रहा था कि यह एक ऐसे आदमी का बतियाना है जो अपनी हालत को इंजॉय करना जानता है और यह भी मानता है कि सारी जेल का फोकस वही हैं. बीच-बीच में लोग आते थे और उनके कान में कुछ कह जाते थे. वे भी अपने खांटी बिहारी ढंग से हुकम चलाते और बतियाते जा रहे थे. जेल से बाहर निकल आने की उन्हें क्या उम्मीद है, इसका कोई साफ और दो टूक जवाब उनने नहीं दिया.
मेज पर एक प्लेट में अंगूर, एक में संतरे की फांकें और एक में कटे हुए सेब आ गए थे. लालू ने बहुत आग्रह करके फल खाने को कहा और नींबू की चाय का ऑर्डर दिया. जैसे किसी फाइव स्टार होटल में कोई उद्योगपति आपको चाय पिलाने ले गया हो. लालू बहुत मजे में थे और अपने बारे में बता रहे थे कि वे कैसे निरीह प्राणी हैं. देखिए पत्नी राबड़ी को सत्ता में बैठाकर हम यहां जेल काट रहे हैं. वो तो अदालत की मेहरबानी है कि हमें यहां जेल भेज दिया और राबड़ी को जमानत दे दी. कहीं दोनों को जेल भेज देते तो सेपरेशन हो जाता. हम यहां इस जेल में और वो वहां औरतों की जेल में.
राबड़ी देवी की लालू ने दिल खोलकर तारीफ की वो कितनी बड़ी उनकी ताकत है. यह फर्क करना मुश्किल था कि वे एक कार्यकर्ता की प्रशंसा कर रहे हैं या पत्नी के प्रति उनका आभार ज्ञापित कर रहे हैं. बाहर आकर राजनीति करने की बात पर लगा कि जैसे अब वे अपने प्रति लोगों में उमड़ी सहानुभूति को पूरे समाज में भुनाना चाहते हैं.
लालू चाहते थे कि हम वह कमरा देख लें, जहां वे रहते थे. वे हमें अस्पताल की एक इमारत में ले गए. पहले उस कमरे में जहां पिछली बार उनके साथ जगन्नाथ मिश्र को भी रखा गया था. लालू ने वह जगह बताई जहां जगन्नाथ मिश्र दिनभर बैठकर पूजा किया करते थे. हाथ से अभिनय करके बताया कि घंटी बजाया करते थे. फिर वे अपने कमरे में ले गए. साफ-सुथरा, बड़ा और ठीक से जमा हुआ था. एक बड़ा डबल बेड लगभग बीच में रखा था. कोने में रखी टेबल पर कुछ देवी-देवताओं की तस्वीरें थीं. एक छोटा टीवी सेट था. दो बड़ी टेबलों पर फलों के ढेर लगे थे. अंगूर, सेब, पपीता, संतरे और जाने क्या-क्या.
लालू ने कहा कि रोज लोग मिलने आते हैं और फल दे जाते हैं. हम उनसे ऐसे बात बनाते हैं कि दूसरे दिन ज्यादा लाएं. फिर सब फल हम कैदियों में बंटवा देते हैं. हम ऐसे गंगा के बालू को गीला करके उस पर घड़ा रख लेते हैं. ये पानी ठंडा. पियो तो सीधे पेट में जाता है. फ्रीज का पानी गले में अटक जाता है.
बाहर छोड़ने जाते हुए लालू ने कहा कि जैसा राजाओं का किला होता है न, ऊंची-ऊंची दीवारें, तालाब, सेना और पुलिस वाले, वैसा ही अपना यह किला है. मजे में राजा की तरह रहता हूं. दरवाजे के पास बहुत सारा कबाड़ पड़ा हुआ था. लालू ने पुलिस वालों और जेल प्रशासन को डांटना शुरू कर दिया कि अब तक यह हटाया क्यों नहीं गया. लालू का सत्ता बोध और गहरा होने के अभियन की प्रतीति सर्वव्यापी है. वे हमारे संस्कृत नाटकों के राजा हैं और विदूषक भी. दोनों एक साथ.
जनसत्ता के पूर्व संपादक प्रभाष जोशी ने यह आलेख ‘लालू की जेल में’ 16 अप्रैल, 2000 को लिखा था. यह उस आलेख का एक हिस्सा है.