हमारे देश में चुनाव को किसी उत्सव से कम नहीं माना जाता है. लेकिन अगर खुद की बात करूं तो करीब 10 साल पहले मताधिकार मिलने के बाद भी अब तक इस उत्सव का आधा-अधूरा आनंद ही उठा पाया हूं. आधा-अधूरा इसलिए कि मैंने अब तक केवल स्थानीय चुनावों में ही वोट किया है, विधानसभा या लोकसभा के चुनावों में नहीं. हालांकि, ऐसा नहीं है कि मैं देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चुनाव की अहमियत को नहीं जानता या नहीं समझता. लेकिन मैंने कभी भी इन चुनावों को गंभीरता से नहीं लिया है या इसकी कोशिश भी नहीं की है.
मैंने पहली बार 19 साल की उम्र में 2010 के उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. जब मैंने पहली बार पंचायत चुनाव में वोट दिया था, तब उसके पीछे का कारण केवल यह रहा था कि मैं जानना चाहता था कि वोट कैसे डाला जाता है. मैंने अपने पहले चुनाव में अपनी व्यक्तिगत समझ या सोच नहीं, बल्कि अपने परिवार और उम्मीदवार के बीच आपसी रिश्ते को आधार बनाकर वोट दिया था. हालांकि, मेरा वोट उस उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित नहीं कर सका. इसके बावजूद मुझे इस बात की खुशी थी कि कि मैंने अपना पहला वोट दिया था.
इसके बाद राज्य में विधानसभा चुनाव (2012), 2014 का लोकसभा चुनाव, फिर 2017 का विधानसभा चुनाव और आखिर में 2019 के आम चुनाव भी हुए. लेकिन इस दौरान मैं कभी घर (ललितपुर जिला) से बाहर था तो कभी पढ़ाई में इतना व्यस्त हो गया कि चुनावी शोर के बीच खुद के भीतर से वोट देने की आवाज ही नहीं आई. उस वक्त मेरी सोच थी कि मेरे एक वोट से चुनावों के नतीजों पर क्या फर्क पड़ जाता है! मेरे एक वोट से क्या हो जाएगा! लेकिन किसी भी चुनाव में एक वोट की वास्तविक अहमियत का अहसास मुझे 2021 में हुए पंचायत चुनावों में हुआ. इस चुनाव में एक उम्मीदवार, जिनको मैं वोट करना चाहता था, उन्हें केवल पांच वोटों से हार का सामना करना पड़ा.
अब आप चाहे इसे मेरी जल्दबाजी कहिए या मेरा पढ़ा-लिखा बेवकूफ होना कि मैं वोट अपनी पसंद के उम्मीदवार को देने गया था, लेकिन पोलिंग बूथ से किसी और को देकर आना पड़ा. मुझे इस बात की जानकारी नहीं थी कि मतदान केंद्र पर पर्ची पर प्रत्याशी का नाम नहीं लिखा रहता है, केवल चुनाव चिह्न रहता है. वहीं, परिवार के तीन वोटर जो मतदान के दिन गांव में न होने के चलते अपना वोट नहीं दे सकें. इस तरह मुझे चुनावों में एक-एक वोट की कीमत समझ में आई.
हालांकि, अब जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे अपनी गलती का अहसास होता है. मैं सोचता हूं कि काश मैंने भी इन चुनावों में अपना वोट दिया होता और बतौर एक नागरिक देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई होती. अब कुछ महीने बाद उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. इस पर केवल राज्य ही नहीं, बल्कि देश-विदेश की भी नजरें हैं. मैं भी अभी से इस चुनाव पर विशेष नजर रख रहा हूं और पूरी कोशिश करूंगा कि मैं अतीत की अपनी गलतियों का न दोहराऊं.
एन राम मूलत: उत्तर प्रदेश के ललितपुर के रहने वाले हैं, फिलहाल वे हिन्दुस्तान अखबार (नोएडा) में सीनियर एग्जीक्यूटिव (कंटेंट) पद पर कार्यरत हैं
(*अगर आप भी अपने पहले चुनाव का अनुभव साझा करना चाहते हैं तो हमें लिखें. हम सभी के लिए इस अनुभव को लिखना इसलिए भी जरूरी है कि आने वाली पीढ़ी तक ये बात पहुंच सके कि भारतीय लोकतंत्र के विकास में उनसे पहले की पीढ़ियों का कितना और कैसा योगदान रहा है. इसके लिए हमारा पता है : electionnama@gmail.com)